मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

मुझे पंख दोगे ?

एकालाप




मुझे पंख दोगे ?
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मैंने किताबें माँगी
मुझे चूल्हा मिला ,
मैंने दोस्त माँगा
मुझे दूल्हा मिला.



मैंने सपने माँगे
मुझे प्रतिबंध मिले ,
मैंने संबंध माँगे
मुझे अनुबंध मिले.



कल मैंने धरती माँगी थी
मुझे समाधि मिली थी,
आज मैं आकाश माँगती हूँ
मुझे पंख दोगे ?
ऋषभ देव शर्मा

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज की नारी को समाधि नहीं आकाश और पंख तो मिलेंगे ही क्योंकि समाज और नारी - दोनों में जागृति और बदलाव आया है। अच्छी कविता के लिए बधाई।

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  2. भावपूर्ण शब्द संयोजन एवं तुलनात्मक शैली के माध्यम से कविता का उद्देश्यपूर्ण अंत निस्संदेह सराहनीय है. कविता जी ..
    -विजय

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  3. ऐसी सुंदर कविता के लिए आपकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है....बहुत बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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