बुधवार, 15 अप्रैल 2009

गर्भभार



एकालाप


गर्भभार


सँभलकर, बहुरिया,
त्रिशला देवी के सोलहों सपनों का सच
तेरे गर्भ में है.


नहीं,
दिव्यता का आलोक
केवल तीर्थंकरों की माताओं के ही
आनन पर नहीं विराजता ;
हर बेटी, हर बहू
जब गर्भ भार वहन करती है
उतनी ही आलोकित होती है.


हिरण्यगर्भ है
हर स्त्री.
उसके भीतर प्रकाश उतरता है,
प्रभा उभरती है,
प्रभामंडल जगमगाते हैं.
प्रकाश फूटता है
उसी के भीतर से.

प्रकाश सोया रहता है
हर लड़की के घट में,
और जब वह माँ बनती है
नहा उठती है
अपने ही प्रकाश में,
अपनी प्रभा में.
अपने प्रभामंडल में.


सँभलकर, बहुरिया,
तेरे अंग अंग से किरणें छलक रही हैं!


-ऋषभ देव शर्मा


9 टिप्‍पणियां:

  1. प्रशांति से मन भरती आह्लादित करती कविता !

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  2. कविता जी नमस्कार ...बहुत बढिया शब्द कवि की सोच और अनुभूति उन्हें और आपको साधुवाद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. मन को छूने वाली कविता जो एक नारी जन्म के सार्थक होने का प्रमाण प्रस्तुत करती है। मां बनने का अहसास ही तो उसे नौ माह का बोझ भी बोझ नहीं लगता॥

    जवाब देंहटाएं
  4. हर नारी हिरण्यगर्भा है -
    आगे इन्सान क्या करता है वह उसकी फितरत होती है
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  5. kavita jee,
    agar sambhav ho to balmiki ramayan ke 'agni parikscha ' prasang ke mool aalekh aur hindee anuvad prapt karne ka tareeka batayen .main apne blog pe 'RAM KEE VYAKTI PARIKSCHA' LIKH RAHA HOON .SAYAHAYATA MILEGEE .
    DHANYAVAD

    जवाब देंहटाएं

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