शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

मर्दिता

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एकालाप

मर्दिता


बहुत मार खाई मैंने
तुम्हारे लिए ,
तुम्हारे प्यार के लिए.


मैंने सपने देखे ,
तुम्हें अपना माना
और बहुत मार खाई
पिता के हाथों,
समाज के हाथों भी :

भला यह भी कोई बात हुई
कि औरत सपने देखे
कि औरत प्यार करे
कि औरत इज़हार करे!


मेरा अंग अंग रोता रहा
एक स्पर्श के लिए
और तुम
रौंदते रहे मुझे
मिट्टी समझकर.


बहुत मार खाई मैंने
तुम्हारे लिए,
तुम्हारे हाथों!

- ऋषभ देव शर्मा



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