सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

स्त्री को तेज़ाब बना डालने के लिए .....

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 स्त्री को तेज़ाब बना डालने के लिए.....   
 
- वंदना शर्मा 





Woman Releasing Anger by screaming Canvas painting


किसी स्त्री को तेज़ाब बना डालने के लिए इतना काफी है ..

कि छुरा भौंक दिया जाए बेपरवाह तनी पीठ पर

और वह जीवित बच जाए ..

उसे विषकन्या बनाया जा सकता है

करना बस इतना है

कि आप उसे बहलाओ फुसलाओ आसमानों तक ले जाओ

भरपूर धक्का दो ...

और वह सही सलामत जमीन पर उतर आये

नग्न कर डालने के लिए इतना बहुत

कि श्रद्धा से बंद हों उसके नेत्र

और आप घूर रहे हों ढका वक्ष...

बहुत आसान है उसे चौराहा बनाना,पल भर लगेगा, खोल कर रेत से

बाजार में तब्दील कर दो, सुस्ता रहे सारे भरोसे बंद मुट्ठी के...



निरर्थक हैं ये बयान भी किसी स्त्री के

कि सच मानिए, कोई गलती नही की,प्रेम तक नही किया, सीधे शादी की

पर मै कभी टूटती नही कभी निराश नही होती

एक स्त्री ठीक इस तरह जिए, फिर भी वह सिर्फ स्त्री नही रहती

यह इतना ही असम्भव है जितना असम्भव है

एक लाठी के सहारे भरा बियावान पार करना..



इस लाठी पर भरोसा भी आप ही की गलती है

आप ये सोच के गुजरिये ...

कि ऋषियों के भेस में लकड़बग्घों की बारात ही मिलती है

और बहुत समय नही गुजारा जा सकता ऊँचे विशाल वृक्षों पर

मजबूत शाखाओं के छोर ...

अंतत: मिलेंगे लचीले कमजोर, तनों में ही छुपे होंगे गिद्ध मांसखोर



और ये गिलहरी प्रयास भी कुछ नही हैं,तुम्हारी अनुदार उदारताओं के ही सुबूत हैं

मसले जाने की भरपूर सुविधाओं के कारण ही,सराहनीय हैं चींटी के प्रयत्न..

बाकी सब जाने दीजिये,सेल्फ अटेसटिड नही चलते चरित्र प्रमाणपत्र

अस्वीकृति की अग्नि में वे तमगे ढाले ही नही गए

जो सजाये जा सके स्त्री के कंधो पर ..



बिखरी हुई किरचों के मध्य आखिर कहाँ तक जाओगी

भूले हुए मटकों में ही छुपी रह जायेंगी अस्तित्व की मुहरें

तुम्हारे जंगलों के मध्य से ज़िंदा गुजरना,वाकई बहुत बहुत कठिन हैं

किन्तु इन हाँफते हुए जंगलों के बीच से ही, फूटते हैं गंधकों के स्रोत

काले घने आकाश में भी जानते हैं इंद्र धनुष, अपना समय



जानती हूँ आप इसे यूँ कहेंगे

कि हथौड़ों के प्रहार से और भी खूबसूरत हो जातीं हैं चट्टानें

मै इसे यूँ सुनूँगी

कि घायल बाघिनों से पार पाना लगभग असम्भव है

क्यों कि वे सीख ही जातीं हैं, आघातों की बोलियाँ, कुछ इस तरह

कि जैसे पहचान ही लेतीं हैं नागिने...

अपने हत्यारे !!!



गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

क्यों?

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क्यों? आखिर क्यों?
- गिरिजेश तिवारी 


 Dear friend, have the devotees of Kali and Durga the courage to allow their daughters and wife to act like these goddesses. I think any way they can go to any length to do the opposite. if the self-esteem of kaalee and the valor of Durga develops in the personality of my daughter, then what's the point! Less than that the women-freedom is impossible. is this ambition not comletely an indian desire? do my conservative friends have the courage to agree with me?



"Stand up, to break the chains! Why are you chanting the stereotypes? becoming weak and vulnerable you are only defending this system! have you not become a curse to your own race? "



to oppose the women’s liberation there are standing in opposition the Tikadhari Kupmnduk conservatives on one side and on the other are the Taliban fighters intent on maintaining the value system of islam by making captive the women inside the mask. The husband is burning their wife in day to day family life at in law’s residence while she is alive and he is not even hesitating from killing her in dowry murder. there are fathers donating their daughters to become free from her burden by killing her even before her birth inside the uterus and turban bearing jaats have insisted on going ahead to kill their daughters in the name of prestige killing to maintain the purity of their clan’s blood. even today the women are bound to live the life of second grade citizen and are oppressed inside the frame of the doorway of house, as well as both in the in the market and the office being humiliated by not accepting them as humans on the level of equality but merely an "stuff" to be consumed by male dominated society all over the world. The women’s liberation movement may become even more powerful – I want to politely request you to involve, with your influential role in the campaign of women’s liberation movement. long live women’s liberation movement! long live revolution!with a lot of love 



प्रिय मित्र, काली और दुर्गा की पूजा करने वाले भक्त गण क्या अपनी बेटी को दुर्गा और पत्नी को काली जैसा आचरण करने की छूट देने की हिम्मत रखते हैं. मैं समझता हूँ वे किसी भी तरह से किसी भी हद तक उतर कर इसका उलटा ही करते हैं. अगर मेरी बेटी में काली का आत्मसम्मान और दुर्गा का शौर्य हो तो क्या बात है! इससे कम पर नारी-मुक्ति असंभव है. क्या यह कामना पूरी तरह भारतीय नहीं है? क्या मेरे परम्परावादी मित्र मुझसे सहमत होने का साहस रखते हैं?


"उठ खड़ी हो, बन्धनों को तोड़ दे!  कर रही क्यों रूढ़ियों का जाप है?  तन्त्र को इस पोसती, अबला बनी, खुद बनी निज जाति पर अभिशाप है?"


आज नारी-मुक्ति के विरोध में खड़े हैं एक ओर टीकाधारी कूपमंडूक परम्परावादी, तो दूसरी ओर हैं नकाब में नारी को कैद करके रखने का दुराग्रह बनाये रखने पर आमादा तालिबानी जेहादी. जहाँ पतिदेव हर दिन उनको जिन्दा नरक में भूनते रहते हैं और दहेज-वध करने से भी बाज़ नहीं आते, वहीँ पिता जी या तो भ्रूण-हत्या करके अपनी कन्या का जन्म लेने के पहले ही 'दान' कर के मुक्त हो जाते हैं या फिर प्रतिष्ठा-हत्या कर के खाप के खाप पग्गडधारी जाट अपने खून को शुद्ध बनाये रखने पर बजिद हैं. अभी भी जहाँ चौखट के अन्दर नारी उत्पीड़ित है, वहीँ बाज़ार और ऑफिस में भी उसे मनुष्य नहीं 'माल' मान कर अपमानित किया जा रहा है. ऐसे में नारी-मुक्ति आन्दोलन और भी सबल बने - इस कामना को साकार करने के अभियान में अपनी प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह करने का आप से विनम्रता के साथ अनुरोध करना चाहता हूँ.



आज भी नारी को समानता और सम्मान उपलब्ध नहीं है. सारी दुनिया में नारी दूसरे दर्जे के नागरिक का जीवन जी रही है. उसे सेकंड सेक्स कहा जाता है. फर्स्ट सेक्स नहीं. पुरुष ही फर्स्ट सेक्स बना हुआ है- क्यों? परिवार में कितना प्रेम है आप भी जानते हैं. औरत को अपने पिता का घर छोड़ कर पति के घर जा कर रहना होता है. पति क्यों नहीं पत्नी के घर जा कर अपनी जवानी के बाद का मृत्यु तक का जीवन बिताते हैं? क्यों औरत ही चूल्हे चौके की ज़िम्मेदारी उठा रही है. पति क्यों सुबह केवल अखबार पढ़ना और चाय का प्याला भी पत्नी के हाथ का ही पीना चाहता है? सारे व्रत नारी के लिये हैं क्यों? क्यों पत्नी की जगह पति कोई एक भी उपवास नहीं करता? अपने पूरे शरीर को रंग रोगन से पोत कर क्यों नारी ही सुन्दर मानी जाती है? पतिदेव क्यों मेकअप नहीं कर के स्वयं को और सुन्दर बना डालते हैं? मेरी एक बेटी है वह पढ़ना चाहती है, उसे टेलीफोन से पढाता हूँ. उसके ससुराल के लोग उसे केवल पेट पर्दा पर जनम-जेल में खटाने पर बजिद हैं? क्यों बेटी सरकारी स्कूल में जाती है और बेटा इंग्लिश मीडियम स्कूल में? क्यों केवल लडकी के घर से बाहर जाने पर निगाह रखते हैं माता-पिता, बेटे पर नहीं? क्यों लड़की की इज्ज़त ही बलात्कार का शिकार बना कर अपमानित की जाती है? लड़कों के कुकर्मों से माँ-बाप की इज्ज़त नहीं प्रभावित होती? क्यों पुरुष अनेक पत्नी रखता है? क्यों बहुपतिप्रथा जो एक समय में भारत में प्रचलित थी, अब प्रचलन में नहीं है. मगर बहुपत्नीप्रथा दिखाई दे जाती है? क्यों केवल नारी ही रखैल बनायी जाती है? पति रखेला नहीं बनता? पत्नीव्रती पति क्यों नहीं हैं? क्यों पतिव्रता नारी का ही गौरवगान भरा है पूरे साहित्य में? क्यों पूरा साहित्य नारी सौन्दर्य का वीभत्स चित्र लिखता रहा है ? पुरुषों ने ही अधिकतम ग्रंथों को क्यों लिख डाला? नारी और शूद्र क्यों वेद पढ़ने सुनने से प्रतिबंधित किये गये? क्यों नारी को असूर्यपश्या अवगुंठनवती बन कर रहना पड़ा? ये सारे प्रश्न उत्तर चाहते है?



इतिहास को नकारा नहीं जा सकता? क्यों सती को मायके जाने से शिव मना कर देते हैं? शिव को कहीं जाने से तो सती मना नहीं करतीं! क्यों तुलसी कह देते हैं - शिव संकल्प कीन्ह मन माही, यहि तन सती भेंट अब नाही. शिव का अपनी पत्नी को इस तरह मन ही मन तलाक दे देना क्या उचित है? इस्लाम भी तलाक देता है तो केवल पति क्यों देता है? पत्नी तलाक देने की अधिकारिणी धर्म की दृष्टि में क्यों नही है? नारी की समानता या गुलामी प्रश्न केवल इतना सीधा सा है! क्यों काली को क्रोध आया और सप्तशक्तियों को प्रकट करना पड़ा? शिव क्यों अक्षम हो गये काली के क्रोध के सामने? क्यों सारे देवगण दैत्यों का मुकाबला नही कर सके? और तब क्यों उनको अपनी नारी शक्ति को दुर्गा के रूप में युद्ध करने के लिये आह्वान करना पड़ा? क्यों सांख्य दर्शन का आदिपुरुष केवल साक्षी, द्रष्टा और निष्क्रिय है? सारी सृष्टि केवल प्रकृति की नारी शक्ति का ही विस्तार है? माया ही क्यों महाठगिनी है? मोहिनी रूप ही विष्णु को भी क्यों बना कर बार बार ठगना पड़ा? 


सब सवालों का एक जवाब है कि नारी गुलाम थी और है! समाधान न हिन्दू दे सकते, न मुसलमान, समाधान केवल वह देता है, जो समस्या झेलता है और नारी आज समाधान के स्वर में बोल रही है? उसकी आवाज़ तस्लीमा नसरीन की आवाज़ है, कविता वाचक्नवी की आवाज़ है, पुष्पा की आवाज़ है, सिमोन दे बुआ की आवाज़ है, नीलाक्षी की आवाज़ है, रश्मि भारद्वाज की आवाज़ है, आकांक्षा और असंख्य लडकियों की आवाज़ है.


काल-प्रवाह के साथ गूँजती-फैलती यह आवाज समानता के अधिकार का नारी-मुक्ति आन्दोलन का विजय-घोष है, जो पुरुष दम्भ को दहला रहा है. इतिहास का विरोध करने वाले इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिए जाते हैं. इतिहास का प्रवाह नारी-मुक्ति का प्रवाह भी है!


मेरा शरीर पुरुष का है, मगर मैं अपनी बेटियों के लिये उनकी अपनी माँ से अधिक नज़दीक हूँ. मुझे अपने बेटों से अधिक अपनी बेटियों पर गर्व है. वे किसी से भी किसी तरह से कम नहीं हैं. उन्होंने आजीवन मेरी अपेक्षाओं और परीक्षाओं - दोनों पर खुद को खरा साबित कर के दिखाया है. आज भी उनके दीप्तमान आवेग और आक्रामक आक्रोश के सामने सारे आभामंडल छिन्न-भिन्न हो रहे हैं. और मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ.







शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

कृष्ण प्रताप कथा सम्मान वर्ष 2011 : निर्णय घोषित

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कृष्ण प्रताप कथा सम्मान वर्ष 2011
निर्णय घोषित 
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कृष्ण प्रताप कथा सम्मान वर्ष 2011 से चर्चित कथा लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ को उनके कहानी संग्रह " केयर ऑफ स्वात घाटी " के लिए नवाजा जायेगा । 

ध्यातव्य है कि इसके पूर्व गत वर्ष चर्चित कहानीकार बन्दना राग को यह सम्मान से उनके कहानी संग्रह "युटोपिया" के लिए दिया जा चुका है । 

कथा सम्मान के निर्णायक श्री विभूति नारायण राय एवं श्री दिनेश कुमार शुक्ल  हैं ।                    
    



     नरेन्द्र पुण्डरीक
सचिव 
केदार शोध पीठ न्यास,


                                                                                      

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

आशा भोंसले का तमाचा

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आशा भोंसले का तमाचा
डॉ. वेदप्रताप वैदिक


आशा भोंसले और तीजन बाई ने दिल्लीवालों की लू उतार दी। ये दोनों देवियाँ ‘लिम्का बुक ऑफ रेकार्ड’ के कार्यक्रम में दिल्ली आई थीं। संगीत संबंधी यह कार्यक्रम पूरी तरह अंग्रेजी में चल रहा था। यह कोई अपवाद नहीं था। आजकल दिल्ली में कोई भी कार्यक्रम यदि किसी पाँच-सितारा होटल या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी जगहों पर होता है तो वहाँ हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा के इस्तेमाल का प्रश्न ही नहीं उठता। इस कार्यक्रम में भी सभी वक्तागण एक के बाद एक अंग्रेजी झाड़ रहे थे। मंच संचालक भी अंग्रेजी बोल रहा था।

जब तीजनबाई के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि यहाँ का माहौल देखकर मैं तो डर गई हूँ। आप लोग क्या-क्या बोलते रहे, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा। मैं तो अंग्रेजी बिल्कुल भी नहीं जानती। तीजनबाई को सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था लेकिन जो कुछ वहाँ हो रहा था, वह उनका अपमान ही था लेकिन श्रोताओं में से कोई भी उठकर कुछ नहीं बोला। तीजनबाई के बोलने के बावजूद कार्यक्रम बड़ी बेशर्मी से अंग्रेजी में ही चलता रहा। इस पर आशा भोंसले झल्ला गईं। उन्होंने कहा कि मुझे पहली बार पता चला कि दिल्ली में सिर्फ अंग्रेजी बोली जाती है। लोग अपनी भाषाओं में बात करने में भी शर्म महसूस करते हैं। उन्होंने कहा मैं अभी लंदन से ही लौटी हूं। वहाँ लोग अंग्रेजी में बोले तो बात समझ में आती है लेकिन दिल्ली का यह माजरा देखकर मैं दंग हूँ। उन्होंने श्रोताओं से फिर पूछा कि आप हिंदी नहीं बोलते, यह ठीक है लेकिन आशा है, मैं जो बोल रही हूँ, उसे समझते तो होंगे? दिल्लीवालों पर इससे बड़ी लानत क्या मारी जा सकती थी?

इसके बावजूद जब मंच-संचालक ने अंग्रेजी में ही आशाजी से आग्रह किया कि वे कोई गीत सुनाएँ तो उन्होंने क्या करारा तमाचा जमाया? उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम कोका कोला कंपनी ने आयोजित किया है। आपकी ही कंपनी की कोक मैंने अभी-अभी पी है। मेरा गला खराब हो गया है। मैं गा नहीं सकती।


क्या हमारे देश के नकलची और गुलाम बुद्धिजीवी आशा भोंसले और तीजनबाई से कोई सबक लेंगे? ये वे लोग हैं, जो मालिक है और प्रथम श्रेणी के हैं जबकि सड़ी-गली अंग्रेजी झाड़नेवाले हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों को पश्चिमी समाज नकलची और दोयम दर्जे का मानता है। वह उन्हें नोबेल और बुकर आदि पुरस्कार इसलिए भी दे देता है कि वे अपने-अपने देशों में अंग्रेजी के सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के मुखर चौकीदार की भूमिका निभाते रहें। उनकी जड़ें अपनी जमीन में नीचे नहीं होतीं, ऊपर होती हैं। वे चमगादड़ों की तरह सिर के बल उल्टे लटके होते हैं। आशा भोंसले ने दिल्लीवालों के बहाने उन्हीं की खबर ली है। 


01 फरवरी 2012
ए-19, प्रेस एनक्लेव, नई दिल्ली-17, फोन घरः 2651-7295,
मो. 98-9171-1947

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