tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post1319421157964442526..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): वूमन इन ....( अबुल कासिम)Unknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-70358828325587058262008-09-18T04:40:00.000+01:002008-09-18T04:40:00.000+01:00कविता जी, आप एक सशक्त एवं प्रखर सामाजिक साहित्यिक ...कविता जी, आप एक सशक्त एवं प्रखर सामाजिक साहित्यिक कार्यकर्ता हैं, आपको अपने आलेखों के माध्यम से जागृति लानी चाहिए।ललितhttps://www.blogger.com/profile/16095464463179535684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-18727426684761031282008-07-19T21:17:00.000+01:002008-07-19T21:17:00.000+01:00ललित जी, आप ने तो कई अन्य रोंगटे खड़े करने वाले तथ्...ललित जी, आप ने तो कई अन्य रोंगटे खड़े करने वाले तथ्यों का खुलासा कर दिया. जनसामान्य तो संभवत: इनसे परिचित भी नहीं होगा.<BR/><BR/>क्या विडम्बना है.Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-41286874482525257852008-07-12T10:32:00.000+01:002008-07-12T10:32:00.000+01:00इस्लाम में नारी को पर्दे में रहने, कई बंधनों में र...इस्लाम में नारी को पर्दे में रहने, कई बंधनों में रहने का निर्देश हो सकता है कि तत्कालीन स्थितियों के चलते जनहित में दिया गया हो। किन्तु कुछ पापियों द्वारा नारी के प्रति अत्याचार होते रहे हैं, विशेषकर तवायफ बनाना, मुजरा करवाना, भगनासा काट देना (ठंडी बनाने हेतु), भगनासा छिद्रण कर छल्ला पहनाना(चिर कामुक बनाने हेतु) आदि अत्यन्त दारुण व जघन्य कुरीतियाँ हैं जिनका विरोध किया जाना चाहिए।ललितhttps://www.blogger.com/profile/16095464463179535684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-44296267584271942422008-07-05T18:54:00.000+01:002008-07-05T18:54:00.000+01:00Abul kasemके लंबे लेख को पढ़कर कुछ वर्ष पूर्व 'हंस...Abul kasemके लंबे लेख को पढ़कर कुछ वर्ष पूर्व 'हंस' के मुसलमान विशेषांक में छपे कई आलेकों की याद ताजा हो आई. <BR/><BR/>प्रचार चाहे जो किया जाता हो पर जमीनी सच्चाई यही है की न तो इस्लाम स्त्री जाती के प्रति सदय और संवेदनशील है [ कुछ अपवादों को छोड़कर ] और न ही मुस्लिम समाज में स्त्री की दशा दूसरों से बेहतर है .<BR/><BR/>इसलिए यह ध्यान रखना पड़ेगा कि संघर्ष करती स्त्री के स्त्री और मानव होने का महत्त्व मुस्लिम या ईसाई या हिंदू होने से ज़्यादा है.<BR/><BR/>विचारोत्तेजक सामग्री जुटाने के लिए साधुवाद !!RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.com