tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post1376336979836691423..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): निरुपमा की हत्या की गुत्थियाँUnknownnoreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-62335780755775311422010-05-06T16:28:05.390+01:002010-05-06T16:28:05.390+01:00तथ्यों के आलोक में इन चीजों को भी जोड़ दिया जाना च...तथ्यों के आलोक में इन चीजों को भी जोड़ दिया जाना चाहिए -<br /><br />निरुपमा को लिखा पिता का पत्र किसने जारी किया?<br />क्या माता पिता ने स्वयं? या प्रियभांशु ने?<br />प्रियभांशु के पास वह पत्र आया कैसे?<br /><br />सन्देह यह जाता है कि निरुपमा की हत्या के समाचार के बाद प्रियभांशु निरुपमा के आवास पर गया होगा, तभी तो वह खोजकर पत्र जारी करता है। <br /><br />यदि गया तो यह उसका सम्वैधानिक अपराध है, तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने की मंशा और उसे क्रियान्वित करना। अर्थात् प्रियभांशु ने कुछ तथ्य मिटाए भी होंगे, उड़ाए भी होंगे।<br /><br />क्या यह सम्भव नहीं है कि प्रियभांशु विवाह से मुकर गया हो व निरुपाय निरुपमा अपने माता-पिता के पास इसी दुविधा में गई हो व वहाँ जा कर विवाह न होने की सम्भावना के बावजूद वह प्रियभांशु के गर्भ को नष्ट न करने की जिद्द पर हो... और ऐसी तनातनी, कहासुनी, झगड़े और विवाद का फल हो उसकी मॄत्यु!<br /><br />प्रियभांशु के मोबाईल के अन्य रेकोर्ड्स की जाँच भी अनिवार्य है।<br /><br />पिता का पत्र जारी करके सारे कथानक को जातिवाद के रंग में रंगने की साजिश का बड़ा मन्तव्य प्रियभांशु के अपने अपराध से ध्यान हटाने व पुलिस और मीडिया को गुमराह करने की साजिश हो।<br /><br />वरना मॄत्यु की पहली सूचना के तुरन्त साथ ही प्रियभांशु अपना नाम व चित्र सार्वजनिक न होने की जद्दोजहद में न होता ( जैसा कि कई एजन्सियों ने तब कहा/लिखा/बताया था)।<br /><br />वस्तुत: यह स्त्री के साथ छलनापूर्ण प्रेम कथा का पारम्परिक दुखान्त व भर्त्सनायोग्य दुष्कृत्य है। जिसकी जितनी निन्दा की जाए कम है। हत्यारों और हत्या की ओर धकेलने वालों को कड़ा दण्ड मिलना ही चाहिए।Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-85153463994300469792010-05-05T00:02:20.684+01:002010-05-05T00:02:20.684+01:00मुझे ये मामला बहुत सरल नहीं लगता. ये बहुत संभव है ...मुझे ये मामला बहुत सरल नहीं लगता. ये बहुत संभव है कि लड़की अपने मात-पिता को मनवा कर शादी कर रही हो, और सिर्फ उनके प्रति अपने प्रेम के लिए घर गयी हो. पर हमारे समाज में जिस तरह से प्रेम विवाह प्रायोजित होते है, उनका अपना दबाब होता है. ये भी उतना ही संभव है कि प्रेमी और प्रेमी के माता-पिता भी सीधे-सीधे कोर्ट की शादी या बिना दहेज़ वाली शादी के पक्ष में न रहे हो. और चूँकि लड़की गर्भवती थी, उस पर भावनात्मक दबाब बनाया गया हो अपने माता-पिता को राज़ी करवाने का. अंतरजातीय और गैर अंतरजातीय प्रेम विवाहों में भी विवाह अपनी पसंद के व्यक्ति से होना एक मुख्य कारण है विरोध का, पर उससे भी ज्यादा है कि विवाह धूमधाम से हो, लोगों के खासकर वर पक्ष की दान दक्षिणा बनी रहे. वर और वधु पक्ष दोनों की सामाजिक प्रतिष्ठा विवाह के धूम-धाम से जुडी होती है. ये भी उतना ही संभव है, कि लड़की के पिता ने इस तरह के विवाह को संपन्न करने से मना किया हो. और वर-पक्ष ने लड़की को बिना धूम-धाम, दान-दक्षिणा के स्वीकार करने से. दो तरफ़ा मार ने लड़की को आत्महत्या की तरफ धकेला हो. ये भी उतना ही सही है कि पारंपरिक रूप से दान दहेज़ के साथ जिन बहुओं का आगमन होता है, ससुराल में उनकी स्वीकृति आसान होती है. इसके उलट कितने भी पैसे कमाने वाली लड़की हो, अगर बिन धूम-धाम के घर में आती है, तो उसकी स्वीकृति नहीं होती.<br /><br />इसीलिए इसे "ओनर किलिंग" के बजाय एक व्यापक सामाजिक समस्या की तरह ही देखना होगा. कविता जी की बात से मेरी सहमती है. पिता की असहमति क़त्ल का प्रमाण नहीं है. सिर्फ असहमति का प्रमाण है. इस बात का भी प्रमाण है कि एक आत्म-निर्भर, शिक्षित, कमाऊ लड़की के लिए भी अपनी शर्तों पर सिर्फ विवाह कर लेना कितना मुश्किल है.स्वप्नदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/15273098014066821195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-47604052588493373422010-05-04T15:02:35.330+01:002010-05-04T15:02:35.330+01:00कारण जो कोई भी रहा हो। लेकिन एक गर्भवती स्त्री की ...कारण जो कोई भी रहा हो। लेकिन एक गर्भवती स्त्री की हत्या एक जघन्य अपराध है। उस को लेकर कितने ही प्रश्न क्यों न उठाए जाएं। चाहे वह जाति भेद हो या कुवाँरा मातृत्व किसी भी स्थिति में यदि गर्भवती स्त्री की हत्या होती है या फिर वह सामाजिक भेद के कारण आत्महत्या करती है तो उस के वास्तविक हत्यारे और उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाले तो जघन्य अपराधी हैं ही। वह समाज उस से भी बड़ा अपराधी है जो इस तरह के अपराधों को होने देता है और अपराधियों को संरक्षण प्रदान करता है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-90860102379632959752010-05-04T14:12:26.234+01:002010-05-04T14:12:26.234+01:00जो लड़की महानगर में अकेली रहती है व प्रतिष्ठित पत्...जो लड़की महानगर में अकेली रहती है व प्रतिष्ठित पत्रकारिता से जुड़ी है, अपने पैरों पर खड़ी है, और सबसे बढ़कर जो एक पुरुष के साथ सहवास करने का साहस रखती है----<br /><br />कविता जी , <br />आपकी इस बात मे से लांछन की सी बूँ आ रही है।निरुपमा के पिता ने भी इसी साहस को चेतावनी दी थी।<br />भावनाओं और परिवार की इज़्ज़त के नाम पर परिवार के बड़ों द्वारा लड़कियाँ अक्सर ही ब्लैकमेल की जाती हैं , धमकाई जाती हैं।अपने निर्णयों की घोषणा बड़ों के सामने करना और उन पर उनकी सहमति प्राप्त करना हमेशा से ही संतान के लिए रस्सी पर नट कला के समान रहा है।<br />यूँ सच्चाई कभी पूरी सामने नही आती।उसके टुकड़े ही हाथ लगते हैं।आपके हाथ भी सच का वही टुकड़ा है जो मेरे सामने है। उसी के आधार पर वह पोस्ट है।<br />दूसरा, <br />मेरा मुद्दा यह कतई नही कि यह समझाइश नही धमकी है।हम सब जानते हैं कि अक्सर माता-पिता की समझाइश मे धमकी की बूँ होती है...इसमे गलती किसी व्यक्ति की नही है , यह पत्र समझाइश ही मानें मुझे आपत्ति नही लेकिन यह भी जानना ज़रूरी है कि समझाते हम वही हैं जितना हम समझते हैं!और हम जो सम्झते हैं वह सही ही हो यह ज़रूरी नही।मुझे यह कहने मे कतई शंका नही कि निरुपमा पिता की समझाइश के अन्दाज़ में ही चेतावनी के स्वर हैं। यह उनकी मानसिक संरचना के कारण हैं जिसमें उनकी बेटी उनकी सम्पत्ति है, उनकी जागीर है,उनका उपनिवेश है जिसके फैसले लेने का हक केवल उन्हे है और जिसका आधार उनका 'धर्म' है।और शायद उनके लिए वही 'धर्म' बेटी की जान से बढकर साबित हुआ !! <br />यह इस या उस धर्म की बात नही , यह किसी भी 'धर्म'की बात है।<br />इसलिए मैने कहा कि "धर्म" से टकराना स्त्री के लिए कभी आसान नही रहा और यह वह सबसे बड़ी दीवार है जो उसके रास्ते मे खड़ी है।धर्म के ठेकेदार और पितृसत्ता के चौकीदार हाथ मे हाथ मिलाए सत्ता की सीढियाँ चढते हैं और मिल बाँट कर 'धर्म विमुख औरतों' को सबक सिखाते हैं!<br /><br />मै आपकी इस बात से सहमत हूँ कि बात एक निरुपमा की नही और किसी एक धर्म की नही ...यह देखने का नज़रिया ही नही होना चाहिए!लेकिन इससे भी माता-पिता पुत्री की हत्या के आरोप से बरी नही हो जाते।और न ही इससे पत्र मे झलकती पिता की क्रूर छवि धूमिल नही हो जाती।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.com