tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post2512139412006741261..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): स्त्री विमर्श : एकालाप : २ (पत्नीं मनोरमां देहि )Unknownnoreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-89862388785610544582008-09-15T03:49:00.000+01:002008-09-15T03:49:00.000+01:00बात तो आपकी सोलह आने सही है लेकिन मुक्ती के लिए सं...बात तो आपकी सोलह आने सही है लेकिन मुक्ती के लिए संघर्ष करना ही पङता है मानसिक सोच के स्तर पर संघर्ष का रास्ता कठिन है पर असाध्य नहीं है नारी मन को लेकर कुछ विचार आप से मिलते जुलते हैं तथा समाज की मानसिकता में कुछ परिवर्तन अवस्य आया है लेकिन पूरी तरह क्रांतीकारी सोच के लिए यह जरूरी है की नारी की मुक्ती के लिए सारा समर्थन घर की स्त्रियों से मिलना शुरू हो यदि घर में ही किसी की भावना को समर्थन नहीं मिलेगा तो कोई ये सोच ले की बहार पुरूष उसे आजादी देने वाला है केवल दिवा स्वप्न है जितनी भी आजादी स्त्रियों की दिखाती है वह घरों से माता पिता की सोच से शुरू हुई है समाज को तो बदलना ही होगा |arun prakashhttps://www.blogger.com/profile/11575067283732765247noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-7030865454590334052008-06-19T14:07:00.000+01:002008-06-19T14:07:00.000+01:00और मेरी मुक्ति? मेरी देह की मुक्ति, मेरे मन की मुक...और मेरी मुक्ति? <BR/>मेरी देह की मुक्ति, मेरे मन की मुक्ति, मेरी आत्मा की मुक्ति??<BR/><BR/>मुक्ति के इतने रूप... बहुत सोच में पड़ जाता हूं यह सब पढ़कर।आशीष "अंशुमाली"https://www.blogger.com/profile/07525720814604262467noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-56802544053152486942008-06-18T20:21:00.000+01:002008-06-18T20:21:00.000+01:00प्रियवर ,आपके विचारों का स्वागत है.इधर लोग पुरूष व...प्रियवर ,<BR/><BR/>आपके विचारों का स्वागत है.<BR/>इधर लोग पुरूष विमर्श में भी व्यस्त हैं, तो विस्मय क्या !<BR/><BR/> मेरे लिए स्त्री विमर्श का आधार <BR/>आज भी मेरे चतुर्दिक स्त्री के मानवाधिकारों का हनन है. <BR/>मेरे निकट स्त्री विमर्श का पुरुश्विरोधी होना कतई गैर-ज़रूरी है ;<BR/>मगर पुरुश्प्रधानता के सामाजिक यथार्थ का क्या कीजे !!<BR/><BR/>~ ऋषभ देव शर्माRISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-62085225384739193272008-06-18T18:44:00.000+01:002008-06-18T18:44:00.000+01:00प्रियवर ,आपके विचारों का स्वागत है.इधर लोग पुरूष व...प्रियवर ,<BR/><BR/>आपके विचारों का स्वागत है.<BR/>इधर लोग पुरूष विमर्श में भी व्यस्त हैं, तो विस्मय क्या !<BR/><BR/> मेरे लिए स्त्री विमर्श का आधार <BR/>आज भी मेरे चतुर्दिक स्त्री के मानवाधिकारों का हनन है. <BR/>मेरे निकट स्त्री विमर्श का पुरुश्विरोधी होना कतई गैर-ज़रूरी है ;<BR/>मगर पुरुश्प्रधानता के सामाजिक यथार्थ का क्या कीजे !!<BR/><BR/>~ ऋषभ देव शर्माRISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-55772719495336837982008-06-17T09:56:00.000+01:002008-06-17T09:56:00.000+01:00आपका लिखा दो चार लेख पढ़ता चला गया .आपने लेबल के स...आपका लिखा दो चार लेख पढ़ता चला गया .आपने लेबल के साथ पुरा न्याय किया है "एकालाप" . उतना पढ़ा लिखा नही हूँ .फ़िर भी इस विषय पर एक माँ का बेटा , पत्नी का पति , बहन का भाई, भाभी का देवर ,बेटी का बाप होने के नाते अपने को योग्य मानता हूँ . आपने नारी समर्थन मे काफ़ी ठोस तथ्य इक्कठा किए हैं कुछ कम सम ही सही पर पुरूष का तथ्य भी संतुलन के लिए जरूरी था . मैंने बहुतों लेख पढ़ें हैं स्त्री विमर्श पर सब के सब एकालापी ही थे . आख़िर कौन पहल करेगा एक ईमानदार बहस की शुरुआत का ? वही न जिसका लिखा पढ़ा जाता हो , छपता हो , बिकता हो , सामाजिक मूल्य स्थापित करता हो . अपने ही हाथों अपने दूसरे हाथ को थुरने भर का जुगाड़ करता लेख आज नारी सशक्तिकरण का कागजी सबल बना है . <BR/>शिक्षा {हर तरह की }अच्छे संस्कार से पनपी जीवन शैली समाज को सशक्त बनाएगी .आपने या अन्य देवियों ने जिस टाईप के पुरूष की बात की है वह कितना विकृत और अशक्त है .पापी ,दुराचारी, हैवान को पुरूष न कहा जाए .<BR/><BR/>भार्या रक्षतु भैरवी ! का अनुनय विनय करने वाला पति पुरूष ही है ,सदाचार और संयम पर पुरूष भी अधिकार रखता है .केवल माँ ही बेटी को स्कूल नही भेजती उसका बाप जो पुरूष है अपनी बेटी को उच्च शिक्षा के साथ कराटे सिखलाने को आतुर है ताकि आपके द्वारा जिसे पुरूष कहा जा रहा है ,उसे मौके पर ही दम तोड़ने को विवश किया जाए .<BR/>अतः देवियों से नम्र निवेदन यह है कि इस विषय पर चल रहे बहस मे पुरूष शब्द को अलग रखें. सार्थक बहस सबलता के पक्ष मे तभी सम्भव है . हमे सबल समाज की कामना है .<BR/>सादर<BR/>संजय शर्मासंजय शर्माhttps://www.blogger.com/profile/06139162130626806160noreply@blogger.com