tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post4342663619629687804..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): क्या कोई और रास्ता नहीं है ?Unknownnoreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-6267353327082452372009-02-24T17:03:00.000+00:002009-02-24T17:03:00.000+00:00राजकिशोर जी को जैसे जैसे पढता जाता हूँ वैसे वैसे उ...राजकिशोर जी को जैसे जैसे पढता जाता हूँ वैसे वैसे उनका प्रशंसक बनता जा रहा हूँ.<BR/><BR/>इस आलेख के लिये साधुवाद. जिनको प्रेम नहीं मिला वे प्रेम के लिये तरसते हैं, लेकिन अकसर प्रेम बांट नहीं पाते हैं. कैसी विडंबना है.<BR/><BR/>सस्नेह -- शास्त्री<BR/><BR/>-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है. <BR/><BR/>महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)Shastri JC Philiphttps://www.blogger.com/profile/00286463947468595377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-18505463243337349772009-02-24T14:07:00.000+00:002009-02-24T14:07:00.000+00:00भौतिक, पदार्थ जैसे शब्दों से जीवन की सोच बदल गयी ह...भौतिक, पदार्थ जैसे शब्दों से जीवन की सोच बदल गयी है। <BR/>भागमभाग, ज़ल्दीबाज़ी सही गलत से ज़्यादा टारगेटट पूरा करने को <BR/>महत्व देने को मजबूर करता है। यह ग्राफ़ नीचे अवश्य आएगा। पर तबतक बहुत कुछ...<BR/>कबूतर की बात पर याद आया कि हमने भी चित्रण किया था-<BR/>http://man-ki-baat.blogspot.com/2006/06/blog-post_27.htmlप्रेमलता पांडेhttps://www.blogger.com/profile/11901466646127537851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-6318091888985522232009-02-24T13:24:00.000+00:002009-02-24T13:24:00.000+00:00sometimes i feel that these discussions are just d...sometimes i feel that these discussions are just discussions <BR/><BR/>if we say todays woman is not like yesterdays woman then we need to look into the reasons <BR/><BR/>we should see what cirumstances the woman of yesterday faced that she groomed her daughter to become "not like her " <BR/><BR/>its a myth that woman of today dont breast feed their children because the percentage of such woman is really negligible as woman now are more health conscious and they understand the breast milk or first feed is good for immunization of the child <BR/><BR/>the mother of today was the girl of yestarday 'she has learnt the art of balancing from her mother <BR/><BR/>and if we say neuclear family is responsible they again nuclear family is not doing of todays woman , she got it from a generation before her <BR/><BR/>giving birth to a child does not mean that mother should stop living her life rather the mother needs to balance her time <BR/><BR/>and those woman who dont have time should not give birth to a child because its better not to give birth to rather than abandon the childRachna Singhhttps://www.blogger.com/profile/15393385409836430390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-87057149351304323562009-02-24T13:17:00.000+00:002009-02-24T13:17:00.000+00:00माँ की भूमिका बदली है .ओर मुझे लगता है उस बेचारी प...माँ की भूमिका बदली है .ओर मुझे लगता है उस बेचारी पर बोझ ओर बढ़ गया है...खास तौर से कामकाजी माँ के लिए .ओर नयी पीड़ी में पिता की भूमिका ओर स्पष्ट हो गयी है .वे पुराने ज़माने के पिता नहीं रहे है जो बच्चो को पुचकारने ओर लोरी सुनाने ओर कपडे बदलने में असहज महसूस करते थे .अब वक़्त बदल रहा है ...आहिस्ता आहिस्ता ही सही पर बदल रहा हैडॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-51031505843587830422009-02-24T12:52:00.000+00:002009-02-24T12:52:00.000+00:00आज की मां के पास शायद उतना समय नहीं है क्योंकि वह ...आज की मां के पास शायद उतना समय नहीं है क्योंकि वह कामकाजी महिला हो गई है। शोसियलाइज़िंग के नाम पर स्तन-पान को भी प्रथमिकता नहीं देती [फिगर खराब होने के भय से]। इसलिए भी शायद ममता और वात्सल्य में कमी आ गई है। और फिर, एकल परिवार का चलन भी कुछ हद तक इसका ज़िम्मेदार है।चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-42238247760348925862009-02-24T12:42:00.000+00:002009-02-24T12:42:00.000+00:00बड़ा ही सार्थक और गंभीर विषय बड़े ही विचारणीय ढंग ...बड़ा ही सार्थक और गंभीर विषय बड़े ही विचारणीय ढंग से उठाया है आपने.....<BR/>इसमे यही कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत टूर पर गंभीरता से विचार कर प्रत्येक माँ या दम्पति को यह निर्णीत करना होगा कि वे अपने जीवन में चाहते क्या हैं.....केवल धन वैभव या धन के साथ साथ परिवार और संस्कार भी.......<BR/>आज ऐसे भी शिक्षित और जागरूक दम्पति दो से अधिक संतानोत्पत्ति के लिए उत्सुक नही होती.उसमे भी यदि बच्चे को सही लालन पालन और स्नेह न मिले तो उनसे सुसंस्कार की अपेक्षा रखना व्यर्थ है. <BR/>नवजात शिशु की माता का धनोपार्जन यदि परम आवश्यक न हो तो शिशु के कुछ समझदार होने तक माता को अपना पूरा समय और ध्यान बच्चे के लालन पालन में ही लगना चाहिए....आख़िर यह भी तो अपने ,अपने परिवार के और बच्चे के लिए हम अप्रत्यक्ष रूप से कमाई ही है.रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.com