tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post4607882273234951297..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): स्त्रीवादियों से कुछ निवेदन : आदर्श स्त्री कौन ?Unknownnoreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-41281788713644740012010-03-07T17:52:59.429+00:002010-03-07T17:52:59.429+00:00बेशक अगर हम अच्छा समाज चाहते हैं तो किसी एक से सार...बेशक अगर हम अच्छा समाज चाहते हैं तो किसी एक से सारी अपेक्षाएँ नहीं की जा सकती. औरतों को अपनी ओर देखना ही होगा. उन्हें अधिक आत्मविश्वासी, आ्त्मनिर्भर और ज़िम्मेदार बनना होगा. पर वे द्रौपदी बनें या सावित्री, यह उन्हीं पर छोड़ देना होगा. समाज इसका जवाब नहीं दे सकता. इसका जवाब खुद औरतों को देना होगा. <br />मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि कोई भी आन्दोलन एकपक्षीय होकर अधिक दूर तक नहीं जा सकता. नारी आन्दोलन को अधिक रचनात्मक बनना ही होगा और नारी मुद्दों के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-75334731838455918072010-03-07T14:45:15.813+00:002010-03-07T14:45:15.813+00:00बहुत अच्छा लेख , लडकी का शिक्षित और साहसी होना बेह...बहुत अच्छा लेख , लडकी का शिक्षित और साहसी होना बेहद आवश्यक है , अधिक लड़कियां आज भी आश्रित और खुद को अपने ही घर पर बोझ महसूस करती हैं, अपने ही पिता और माँ के द्वारा भेदभाव सहना उनकी मूक नियति बन जाती है , और खुद परिवार इस दर्द को महसूस नहीं करता , गलत को गलत कहना आज की सबसे बड़ी जरूरत है , और अपनी पुत्री को उसका हक़ दिलवाने में, सबसे पहले माँ को करना चाहिए ! <br />सादर !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-12855818413836039592010-03-07T07:03:06.999+00:002010-03-07T07:03:06.999+00:00आदर्श स्त्री कौन --सावित्री या द्रोपदी ?
बात जब आद...आदर्श स्त्री कौन --सावित्री या द्रोपदी ?<br />बात जब आदर्श की है तो ज़ाहिर है --सावित्री जैसी पतिव्रता और द्रोपदी जैसी स्वाभिमानी और साहसी।<br />अब यह संभव है या नहीं वर्तमान परिवेश में , यह कहना मुश्किल है।<br /><br />कल महिला दिवस पर ---तैयारी है , पब्स में आधे दाम पर शराब, सिनेमा हाल्स में फ्री टिकेट , और भी कई तरह के डिसकाउंट्स महिलाओं के लिए । आज के व्यवसायिक युग में इसी तरह मनाया जाता है कोई भी दिवस।<br />क्या कोई सोच रहा है उन करोड़ों महिलाओं के लिए जो मेहनत के पसीने से इतना भी जुगाड़ नहीं कर पाती की अपने भूखे बच्चे को एक सूखी रोटी का टुकड़ा मुहैया करा सके ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-77170139790494075852010-03-07T03:36:45.130+00:002010-03-07T03:36:45.130+00:00महिला दिवस पर सब्को शुभकामनाये! आरक्षण(कोई भी)एक स...महिला दिवस पर सब्को शुभकामनाये! आरक्षण(कोई भी)एक स्थिति चिन्ह मात्र है। महिलाये राजनीति में आती रही है, आती है और आयेगी भी चाहे संख्या थोडी हो। परन्तु महिलाओ के लिये क्या,कब और कैसे किया गया, यह प्रश्न चिन्ह है। पुरुष - महिला में कौन सशक्त या कौन प्रमुख,येसी धारणा/बहस आज भी मौजूद है। इसमे बदलाव की आवश्यक्ता है हमे। कंही न कंही हम खुद ही जिम्मेदार हैBarthwalhttps://www.blogger.com/profile/10624244011547494333noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-59000475074862069092010-03-07T02:10:26.593+00:002010-03-07T02:10:26.593+00:00आज महिला दिवस के दिन यह लेख पढ़कर अच्छा लगा।आज महिला दिवस के दिन यह लेख पढ़कर अच्छा लगा।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-37556263147263373422010-03-07T00:39:49.559+00:002010-03-07T00:39:49.559+00:00कविता जी,
ये विडंबना ही है कि खुद को राम मनोहर लो...कविता जी,<br /><br />ये विडंबना ही है कि खुद को राम मनोहर लोहिया के चेले बताने वाले नेता ही महिला रिज़र्वेशन बिल के पीछे लठ्ठ लेकर सबसे ज़्यादा पिले हैं...<br /><br />मेरा ये मानना है कि नारी विमर्श पर ये बहस ही बेमानी है...जब दो हाथ बराबर हैं तो फिर ये किसी को जताने की ज़रूरत ही क्यों होती है कि पुरुष और नारी बराबर है...मैंने एक बार गांधी जी के धर्म के बारे में विचार पड़े थे...गांधी जी के अनुसार अगर ये कहा जाता है कि हिंदू धर्म सहिष्णु है, तो यहां भी कहीं न कहीं अपने को श्रेष्ठ साबित करने की ग्रंथि ही काम कर रही होती है...इसलिए अगर कोई कहता है कि महिलाओं को वो सभी अधिकार मिलने चाहिए जो पुरुषों को हासिल हैं...मेरी समझ में यहां भी कहीं न कहीं पुरुष की अपने को श्रेष्ठतर बताने की मंशा ही काम कर रही होती है...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.com