tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post5114700835772477503..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): उन्हें कब किस महिला ने गाली दी, मुझे बताइयेUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-55203258980689906192012-03-06T13:27:48.403+00:002012-03-06T13:27:48.403+00:00कविता दी...अभी अभी आपकी फेसबुक की पोस्ट पर आपके दि...कविता दी...अभी अभी आपकी फेसबुक की पोस्ट पर आपके दिए इस लिंक को पढ़ा तो अनायास ही मुझे मेरी लिख ये पंक्तियाँ याद आ गयी....<br /><br />समझ नहीं पा रही है <br />वह कि<br />जब वह अपनी <br />निस्सहाय ,<br />बीमार पड़ी माँ की <br />सेवा करते हुए <br />पेट पालन के लिए <br />बाहर काम पर जाती है <br />अपनी पीड़ा सबसे छुपाते हुए <br />हँस कर <br />सबसे बतियाती है <br />तो क्यूँ <br />कुलटा, कुलक्षिणी<br />कहलाती है <br />जबकि <br />"वह "<br />जो काम के बहाने <br />दौरे पर जाता है <br />और <br />मौज -मस्ती व <br />रंगीनियों में <br />अपनी शाम बिताता है <br />फिर भी <br />"बेचारा "<br />ही कहलाता है ....<br /><br />आप बिलकुल सही कह रही हैं....औरत के सशक्तिकरण के विरुद्ध सिर्फ वाही व्यक्ति आवाज़ उठाएगा जो खुद उसके दमन की प्रक्रिया का हिस्सा है...शायद अपनी गिल्ट-फीलिंग के चलते वह ऐसा कर रहा है...Pummyhttps://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-15727222905056143162009-03-14T03:01:00.000+00:002009-03-14T03:01:00.000+00:00आपका लेख प्रभावी है ,जवाब सटीक है।दिक्कत यह है कि ...आपका लेख प्रभावी है ,जवाब सटीक है।दिक्कत यह है कि स्त्री आन्दोलनों को हमेशा इसी तरह देखा जाता है ये पुरुषों के खिलाफ ज़हर उगलती भरती हैं।<BR/><BR/>यह ध्यान रखना चाहिये कि स्त्री कभी किसी मज़दूर आन्दोलन,हरित आन्दोलन ,स्वतंत्रता आन्दोलन या किसी भी मोर्चे मे न्याय की आवाज़ उठाने से नही चूकी है ,तब कोई नही कहता कि नारे लगाने वाली हैं या भाषण बाज़ी वाली हैं या इस -उस के खिलाफ बोलने वाली है लेकिन जैसे ही वह अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाती है आप निशाना बना देते हैं।सुजाताhttps://www.blogger.com/profile/12373406106529122059noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-4160939477250536442009-03-14T01:05:00.000+00:002009-03-14T01:05:00.000+00:00पढ़ा, विचारा -सधा हुआ लेखन-विषय से जरा भी नहीं डिगा...पढ़ा, विचारा -सधा हुआ लेखन-विषय से जरा भी नहीं डिगा और बांधे रखा. साधुवाद!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-29009628543152424192009-03-13T17:15:00.000+00:002009-03-13T17:15:00.000+00:00befitting reply , kavitabefitting reply , kavitaRachna Singhhttps://www.blogger.com/profile/15393385409836430390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-13988151205449997412009-03-13T15:55:00.000+00:002009-03-13T15:55:00.000+00:001. क्षमा करें, मुझे तो यार लोगों का छेड़ा ऐसा घमा...1. क्षमा करें, मुझे तो यार लोगों का छेड़ा ऐसा घमासान कभी-कभी बैठे ठाले का शगल भी लगता है.<BR/><BR/>समाज में आम औरत की दु:स्थिति किसी भी जागरूक नागरिक से छिपी नहीं है.ऐसे में रेत में सिर छिपाने की कोशिश को पलायन कहा जाना चाहिए.<BR/><BR/>और हाँ , सबकी अपनी वर्गीय पक्षधरताएं भी तो होती हैं. कभी बड़े मानवीय सरोकारों के लिए निहित वर्गीय पक्ष का अतिक्रमण भी करना पड़ता है. स्त्री-पक्ष मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से सदा ऐसा ही वृहत मानवीय सरोकार रहा है इसलिए शी-मैन जैसी गाली भी शिरोधार्य है ........'निन्दन्तु नीति-निपुणा: यदि वा...' <BR/> <BR/><BR/>2. शायद यार लोगों की आपत्ति का मूल कारण यह नहीं है कि यह कविता उन्हें अतियथार्थवादी अथवा स्त्री- तुष्टिकरणवादी प्रतीत हुई ....ऐसा प्रतीत होने का कोई आधार नहीं है क्योंकि यथार्थ इससे अधिक वीभत्स है....इसे वे भी जानते हैं. आपत्ति का वास्तविक कारण है....इस कविता [औरतें औरतें नहीं हैं] का<BR/> निर्णयात्मक तेवर .<BR/><BR/> कविता का जजमेंटल होना कुछ दोस्तों को हजम नहीं हो पाया, बात बस इतनी सी है.<BR/><BR/> पर मैं क्या करूँ कि मेरे निकट निर्णयात्मक होना या न होना रचना के क्षण में अप्रासंगिक था , मैं तो एक सच्चाई को शब्दबद्ध कर रहा था .......और मेरा मानना है कि पूरी बात उन शब्दों में बंध नहीं पाई.RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-87912184697005431252009-03-13T15:50:00.000+00:002009-03-13T15:50:00.000+00:00सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी जी द्वारा ईमेल से प्रेषित ट...सिद्धार्थशंकर त्रिपाठी जी द्वारा ईमेल से प्रेषित टिप्पणी-<BR/><BR/><BR/>स्त्री विमर्श पर आपकी पोस्ट के लिए साधुवाद। निम्न टिप्पणी करना चाह रहा था लेकिन पोस्ट नहीं हो सकी। आप अपने कम्प्यूटर से कर दें।<BR/>सादर!<BR/>(सिद्धार्थ)<BR/>~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~<BR/>आदरणीया कविता जी,<BR/>मैने सभी नारीवादी लेखिकाओं पर टिप्पणी नहीं की है बल्कि कुछ... जी हाँ कुछ के बारे में यह बात लिखी है-<BR/><BR/>"आजकल स्त्री विमर्श के नाम पर कुछ नारीवादी लेखिकाओं द्वारा कुछेक उदाहरणों द्वारा पूरी पुरुष जाति को एक समान स्त्री-शोषक और महिला अधिकारों पर कुठाराघात करने वाला घोषित किया जा रहा है और सभी स्त्रियों को शोषित और दलित श्रेणी में रखने का रुदन फैलाया जा रहा है।"<BR/><BR/>लेकिन आपने इसे सभी नारीवादी महिला लेखिकाओं के ऊपर टिप्पणी मान ली। यहीं हमारी असहमति है। इस समाज में हर वर्ग में अच्छे-बुरे, तीव्र-मध्यम, उग्र-शान्त, दुष्ट-सज्जन या चरमपन्थी-मध्यमार्गी लोग भरे पड़े हैं। ऐसे में सामान्यीकरण से बचना चाहिए। बल्कि कोई एक व्यक्ति भी पूरा का पूरा खराब या अच्छा नहीं होता। एक ही व्यक्तित्व में कुछ अच्छी और कुछ खराब बातें मिल जाती हैं। इसलिए किसी को भी पूरी तरह खारिज या स्वीकार नहीं किया जा सकता। अच्छे या बुरे ‘विचार’ होते हैं जिनका मण्डन या खण्डन किया जाना चाहिए, न कि सम्पूर्ण व्यक्ति का।<BR/><BR/>-- <BR/>सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी<BR/>http://satyarthmitra.blogspot.comKavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-25584286260759629512009-03-13T15:12:00.000+00:002009-03-13T15:12:00.000+00:00विचारशील पोस्ट! सभी टिप्पणियां पढ़ीं! अच्छा लगा।आपक...विचारशील पोस्ट! सभी टिप्पणियां पढ़ीं! अच्छा लगा।<BR/>आपका सूत्र वाक्य <B>मानवीयता के संस्कार जब हिलोरें लेते हैं तो समाज मुस्कराता है।</B> पढ़कर अच्छा लगा! मुस्करा रहे हैं! :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com