tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post5781687836481751341..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): सहजीवन को सहजीवन ही रहने देंUnknownnoreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-21856385417419308842010-12-25T06:26:14.827+00:002010-12-25T06:26:14.827+00:00Christmas is not a time nor a season, but a state ...Christmas is not a time nor a season, but a state of mind. To cherish peace and goodwill, to be plenteous in mercy, is to have the real spirit of Christmas.<br />Merry Christmas<br /><a href="http://lyrics-mantra.blogspot.com/2010/12/jingle-bell-jingle-bell-rock-lyrics.html" rel="nofollow">Lyrics Mantra Jingle Bell</a>ManPreet Kaurhttps://www.blogger.com/profile/17999706127484396682noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-91627960463032282792010-11-30T16:17:57.375+00:002010-11-30T16:17:57.375+00:00कविता वाचक्नवी जी, भारतीय परिवेश में सहजीवन का रास...कविता वाचक्नवी जी, भारतीय परिवेश में सहजीवन का रास्ता अासान नहीं है। इसका सही प्रतिफल तभी मिल सकता है जब सकल समाज का दृष्टिकोण इस मुद्दे पर बौद्धिक हो। राजकिशोर जी का लेख अच्छा लगा। इस लेख को प्रस्तुत करने हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद!Dr (Miss) Sharad Singhhttps://www.blogger.com/profile/00238358286364572931noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-15239832968145223412010-10-19T11:07:40.271+01:002010-10-19T11:07:40.271+01:00बुकमार्क कर रहा हूँ, बाद में फुर्सत से पढूंगा।
......बुकमार्क कर रहा हूँ, बाद में फुर्सत से पढूंगा।<br />................<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-22026803587475607572010-10-18T10:05:36.057+01:002010-10-18T10:05:36.057+01:00बच्चे को अवैध करार .....?
इंसान की औलाद है इंसान ...बच्चे को अवैध करार .....?<br />इंसान की औलाद है इंसान बनेगा :)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-22660314055754747172010-10-18T07:14:27.272+01:002010-10-18T07:14:27.272+01:00विवाह में संरक्षण का तत्व महत्वपूर्ण है जबकि सहजीव...विवाह में संरक्षण का तत्व महत्वपूर्ण है जबकि सहजीवन में आपसी समझ से साथ रहने का. जहाँ यह न हो वहां सहजीवन भी सामंती संरक्षणवाद का शिकार हो सकता है. इसलिए इस संस्था को लीगलाईज़ करते ही कई सांप पिटारे से बाहर आ सकते हैं....बचने का एक ही रास्ता है कि सहजीवन को सहजीवन ही रहने दो ताकि स्वेच्छाचार के लिए जगह बची रहे. वाह!RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09837959338958992329noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-46561533787515377702010-10-18T05:13:47.133+01:002010-10-18T05:13:47.133+01:00राज जी , इस लेख के लिए आपको साधूवाद .. बहुत प्रासं...राज जी , इस लेख के लिए आपको साधूवाद .. बहुत प्रासंगिक प्रश्न हैं यह सारे ! आखिर आदमी की जात ही विवाह जैसे अनावश्यक और कल्पित बंधनों में जीने को क्यों अभिशप्त ? यद्यपि मैं एकल युग्म सह-जीवन को भी एक पड़ाव के रूप में देखता हूँ .. इसे भी एक आत्मानुशासित विशाल कम्यून में विकसित होना चाहिए जिसके आधार में पारस्परिक समझ, हिंसा-मुक्त प्रेम, सहानूभूति, मित्रता, व्यर्थताओं से मुक्त सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास, सादगी, कर्मठता, स्वस्थ्य (मानसिक और दैहिक)जैसे और भी जीवन मूल्य हों ..यदि मुझसे कोई पूछे आज की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक या धार्मिक विकृतियों, विषमताओं और विडम्बनाओं के पीछे कौन सा एक मौलिक कारण है तो मुझे कहना होगा "मैं और मेरा परिवार" ऐसा नही कि परिवार के स्नेहसुख नहीं हैं लेकिन इन सुखों के पीछे जो दुःख छिपे रहते हैं वे तो जानलेवा ही साबित होते हैं!श्याम जुनेजा https://www.blogger.com/profile/11410693251523370597noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-21197317478680652772010-10-18T04:47:14.781+01:002010-10-18T04:47:14.781+01:00हम बुद्धिजीवियों की कठिनाई यह है कि हम जीवन को केव...हम बुद्धिजीवियों की कठिनाई यह है कि हम जीवन को केवल शहरों में ही तलाश रहे हैं। ग्रामीण जीवन और जनजातीय जीवन में कितनी सामाजिकता है उस पर कभी चिंतन नहीं होता है। ना तो वहाँ का कोई बच्चा अनाथ है और ना ही महिलाओं की ऐसी समस्या है। वे विवाह को पवित्र विधान मानते हैं लेकिन परिस्थितिवश यदि विवाह नहीं कर पाए तो सहजीवन के सिद्धान्त को ही अपनाते हैं और जब कभी सुविधा होती है तब विवाह कर लेते हैं। लेकिन उनका समाज नहीं टूटता है। वर्तमान में जो सहजीवन की प्रथा आयी है वह केवल भोगवादी सोच का परिणाम है इसमें समाज निर्माण की भूमिका नहीं है।अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.com