tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post8177019642692595987..comments2023-11-03T07:45:43.083+00:00Comments on Beyond The Second Sex (स्त्रीविमर्श): लड़कियों में अच्छी नहीं अतिचंचलताUnknownnoreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-82725366885000134112008-06-22T20:34:00.000+01:002008-06-22T20:34:00.000+01:00दीपक जी,आप के उत्साहवर्धक शब्दों के प्रति धन्यवाद....दीपक जी,आप के उत्साहवर्धक शब्दों के प्रति धन्यवाद.<BR/> अति चंचलता से अभिप्राय `हाईपर एक्टिव' से है, यह शारीरिक लक्षण है. रही प्रेम करने की बात तो ऋषि कण्व तक ने शकुन्तला को कभी दोष नहीं दिया की तुमने दुष्यंत जैसे लम्पट से प्रेम क्यों किया. प्रेम करना मनुष्य की सहज वृत्ति है,जब तक की वह एकनिष्ठ हो.दोष यदि देना है तो छलने वालों को दिया जाना चाहिए, न की छले जाने वाले को.<BR/>अति बेचैनी एक मानसिक व्याधि है जिसके लक्षणों के बारे में यह शोध बताता है.<BR/><BR/> आप ने गंभीरता से देखा व टिप्पणी की तदर्थ आभारी हूँ. <BR/><BR/>द्विवेदी जी, आप के प्रति भी आभारी हूँ. आप की अति सर्वत्र वर्जयेत् की बात से सहमत हूँ.Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-2394195999880557462008-06-22T17:38:00.000+01:002008-06-22T17:38:00.000+01:00कविता जीआपने बहुत बढि़या विषय लिया है इसमें संदेह ...कविता जी<BR/>आपने बहुत बढि़या विषय लिया है इसमें संदेह नहीं है। वैसे देखा जाये तो यह ऐसा विषय है जिसमें शोध की आवश्यकता नहीं है। आप अपने आसपास ऐसी घटनाओं का उदाहरण देख कर लिख सकतीं हैं। अभी एक लड़की जिसे इंटरनेट पर एक पाकिस्तानी लड़के से विवाह किया। अपने लोगों को समझाने के बावजूद वहां गयी। वहां उसके पति का देहावसान हो गया और वह गर्भवती थी इसी कारण उसके ससुराल वाले उसे भारत नहीं आने देना चाहते थे। आखिर उसे उस भारत के दूतावास की मदद लेनी पड़ी जिसे कथित इश्क की खातिर वह अपने अति चंचलता के कारण छोड़ गयी थी। मनुष्य के स्वभाव पर शोधों की जरूरत नहीं होती। आप अपने आसपास घटनायें देखकर उन पर चिंतन और मनन कर शोध कर सकतीं हैं। आपने सुना होगा लड़के की इज्जत पीतल के लोटे की तरह है जो एक बार खराब होने पर साफ किया जा सकता है पर लड़की की इज्जत माटी के बर्तन की तरह हैं। हो सकता है कि मैं लिखने में गलती कर गया हूं पर आप एक लेखिका और कवियत्री हैं और इस विषय पर आगे लिखकर समाज का पथ प्रदर्शन करतीं रहें तो अच्छा रहेगा। आप लेख प्रशंसनीय है।<BR/>दीपक भारतदीपdpkrajhttps://www.blogger.com/profile/11143597361838609566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-131688133944299430.post-66651651344289515662008-06-22T03:13:00.000+01:002008-06-22T03:13:00.000+01:00अति सर्वथा वर्जयेत्। इसी लिए हमारे बचपन में अतिवाद...अति सर्वथा वर्जयेत्। <BR/>इसी लिए हमारे बचपन में अतिवादी लक्षणों को तुरंत ही पहचान लिया जाता था और बार-बार टोक कर उसे ठीक करने के प्रयास किये जाते थे और उस के परिणाम भी सही निकलते थे।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com