मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

न्यूड वीडियो मामला और राजेन्द्र यादव



(प्रथम भाग)


जुलाई 2013 में एक समाचार आया था कि राजेन्द्र यादव की प्रिय लेखिका ज्योति कुमारी ने ‘हंस’ का बहिष्कार किया है। सितम्बर के संपादकीय में ज्योति को लेकर श्री यादव का अनर्गल प्रलाप छपा। अक्टूबर संपादकीय में उन्होंने अपनी गलती के लिए युवा लेखिका से क्षमा माँग ली। राजेन्द्र यादव और 'हंस' के बहिष्कार को लेकर आशीष कुमार ‘अंशु’ ने ज्योति कुमारी से लंबी बातचीत की। ज्योति ने विस्तार से पूरी कहानी बयान की। इस कहानी में यदि आने वाले समय में राजेन्द्र यादव का पक्ष शामिल होता है तो यह कहानी पूरी मानी जाएगी। यहाँ प्रस्तुत है, ज्योति का बयान, जैसा उन्होंने आशीष को बताया। 


‘हंस’ का बहिष्कार करना किसी भी नई लेखिका के लिए आसान फैसला नहीं होता। खास तौर पर जब मेरे लेखन की अभी शुरूआत है। इस बात से कोई इंकार नहीं है कि हंस में जब कहानी छपती है तो अच्छा रिस्पांस मिलता है। मेरी कहानियाँ ‘हंस’, ‘पाखी’, ‘परिकथा’, ‘नया ज्ञानोदय’ और अभी 'बहुवचन' में छपी हैं लेकिन हंस में प्रकाशित किसी भी कहानी के लिए सबसे अधिक फोन, एसएमएस और चिट्ठियाँ मिली हैं। किसी भी लेखक को यह अच्छा लगता है।

मैं पिछले दो सालों से राजेन्द्र यादव और हंस के लिए काम कर रहीं थी। मेरा वहाँ काम यादवजी जो बोले, उसे लिखने का था, हंस में अशुद्धियों को दुरुस्त करना और उसके संपादन से जुड़े काम को भी मैं देखती थी। जब ‘स्वस्थ्य आदमी के बीमार विचार’ पर काम शुरू किया, उसके थोड़ा पहले से मैं उनके पास जा रही थी। लगभग दो साल से मैं उनके पास जा रही हूँ। इस काम के लिए वे मुझे दस हजार रूपए प्रत्येक महीने दे रहे थे। मैं मुफ्त में उनके लिए काम नहीं कर रही थी। सबकुछ ठीक था। यादवजी का स्नेह भी मिल रहा था। उस स्नेह में कहीं फेवर नहीं था। अपनी कहानियों के लिए कभी मैंने उन्हें नहीं कहा। मैं उन्हें लिखने के बाद कहानी दिखलाती थी और कहती थी कि यह यदि हंस में छपने लायक हो तो छापिए। मेरी पाँच-छह कहानियाँ हंस में छपीं।

यदि किसी लेखिका की पहली कहानी छपना उसे किसी साहित्यिक पत्रिका का प्रोडक्ट बनाता है तो मुझे ‘परिकथा’ का प्रोडक्ट कहा जाना चाहिए। मेरी पहली कहानी ‘परिकथा’ में छपी है। मैं हंस की प्रोडक्ट नहीं हूँ। यह सच है कि कथा संसार में मेरी पहचान हंस से बनी। ‘हंस’ मेरे लिए स्त्री विमर्श की पत्रिका रही है। ‘हंस’ से मैने स्त्री अधिकार और स्त्री सम्मान को जाना है। राजेन्द्र यादव जो अपने संपादकीय में लिखते रहे हैं और जो विभिन्न आयोजनों में बोलते रहे हैं। इन सबसे उनकी छवि मेरी नजर स्त्री विमर्श के पुरोधा की बनी।

एक जुलाई 2013 को उनके घर में जो दुर्घटना हुई, उससे पहले उनसे मेरी कोई शिकायत नहीं थी। सब कुछ उससे पहले अच्छा चल रहा था। मैं उन्हें अपने अभिभावक के तौर पर पितातुल्य मानती रही हूँ। मेरा उनसे इसके अलावा कोई दूसरा रिश्ता नहीं रहा। इसके अलावा केाई दूसरी बात करता है तो गलत बात कर रहा है। राजेन्द्र यादव मुझसे कहते थे- ‘तुझे देखकर मेरे अंदर इतना वात्सल्य उमड़ता है, जितना बेटी रचना के लिए भी नहीं उमड़ा। कभी मैं उन्हें कहती थी कि मुझे हंस छोड़ना है तो वे मुझे बिटिया रानी, गुड़िया रानी बोलकर, हंस ना छोड़ने के लिए मनाते थे। राजेन्द्र यादव हमेशा मेरे साथ पिता की तरह ही व्यवहार करते थे।

जब से मैं उनके पास काम कर रहीं हूँ, प्रत्येक सुबह 8.00 बजे- 8.30 बजे उनके फोन से ही मेरी नीन्द खुलती थी। फोन उठाते ही वे कहते- अब उठ जा बिटिया रानी। मैं उनके घर 10.30 बजे सुबह पहुँचती थी। वे रविवार को भी बुलाते थे। रविवार को उनके घर शाम तीन-साढे तीन बजे पहुँचती थी।

राजेन्द्र यादव का मानना था कि वे हंस कार्यालय में एकाग्र नहीं हो पाते हैं। इसलिए वे संपादकीय लिखवाने के लिए घर ही बुलाते थे। जब मैंने राजेन्द्र यादव के साथ काम करना शुरू किया, उन दिनों राजेन्द्र यादव दफ्तर नहीं जाते थे। वे बीमार थे। तीन-चार महीने तक वे बिस्तर पर ही पड़े रहे।‘स्वस्थ आदमी ......’ वाली किताब उन्होंने घर पर ही लिखवाई। उस दौरान वे हंस नहीं जा रहे थे। जब उन्होंने हंस जाना प्रारंभ किया, उसके बाद भी वे रचनात्मक लेखन घर पर ही करते थे। दफ्तर में वे चिट्ठियाँ लिखवाते थे। मेरी नौकरी उनके घर से शुरू हुई थी, इस तरह मेरा एक दफ्तर उनका घर भी था।

30 जून 2013 की रात 10.00 -10.15 बजे के आस-पास मेरे मोबाइल पर नए नंबर से फोन आया। नए नंबर के फोन इतनी रात को मैं उठाती नहीं। लेकिन एक नंबर से दो-तीन बार फोन आ जाए तो उठा लेती हूँ।जब दूसरी बार में मैंने नए नंबर वाला फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज आई- ‘मैं प्रमोद बोल रहा हूँ।’ जब मैने पूछा -‘कौन प्रमोद?’ तो उसने राजेन्द्र यादव का नाम लिया। प्रमोद, राजेन्द्र यादव का अटेन्डेन्ट था। ‘हंस’ में मेरी राजेन्द्र यादव और संगम पांडेय से बात होती थी और किसी से कुछ खास बात नहीं होती थी। मैं बातचीत में थोड़ी संकोची हूं, यदि सामने वाला पहल ना करे तो मैं बात शुरू नहीं कर पाती। प्रमोद से मेरी बातचीत सिर्फ इतनी थी कि वह दफ्तर पहुँचने पर राजेन्द्र यादव के लिए और मेरे लिए एक गिलास पानी लाकर रखता था और पूछता था- ‘मैडम आप कैसी हैं?’ इससे अधिक मेरी प्रमोद से कोई बात हुई हो, मुझे याद नहीं।

उसका फोन आना मेरे लिए आश्चर्य की बात थी। उसने फोन पर कहा- ‘मुझसे आकर मिलो। मैंने तुम्हारा वीडियो बना लिया है। उसे मैं इंटरनेट पर डालने जा रहा हूँ।’

यह फोन मेरे लिए झटका था। कोई यदि वीडियो बनाने की बात कर रहा है तो निश्चित तौर पर यह किसी आम वीडियो की धमकी नहीं होगी। वह नेकेड वीडियो की बात कर रहा होगा। मैंने राजेन्द्र यादव को उसी वक्त फोन मिलाया। जब राजेन्द्र यादव से मेरी बात हो रही थी, उस दौरान भी प्रमोद काफोन वेटिंग पर आ रहा था। राजेन्द्र यादव को मैने फोन पर कहा- ‘प्रमोद नेकेड वीडियो की बात कर रहा है, आप देखिए क्या मामला है?’

राजेन्द्र यादव ने कहा- अब मेरे सोने का वक्त हो रहा है। सुबह बात करूँगा। उनसे बात खत्म हुई प्रमोद का फोन जो वेटिंग पर बार-बार आ ही रहा था। फिर आ गया- उसने फिर मुझे धमकाया।

राजेन्द्र यादव जो दो साल से प्रतिदिन मुझे फोन करके उठाते थे। उस दिन उनका फोन नहीं आया। जब मैंने फोन किया तो उन्होंने कहा- ‘मैं आँख दिखलाने एम्स जा रहा हूं। तुमसे दोपहर में बात करता हूँ। फिर राजेन्द्र यादव का फोन नहीं आया। फिर मैंने ही फोन किया, राजेन्द्र यादव ने फोन पर मुझे कहा- प्रमोद कह रहा है, वीडियो सुमित्रा के पास है और सुमित्रा कह रही है वीडियो प्रमोद के पास है। पता नहीं चल पा रहा कि वीडियो किसके पास है। ऐसा करो, इस मसले को अभी रहने दो। इस पर बात 31 जुलाई वाले कार्यक्रम के बीत जाने के बाद बात करेंगे। मुझे यह बात बुरी लगी। मैंने कहा- ‘आज एक जुलाई है। 31 जुलाई में अभी तीस दिन है। इस बीच प्रमोद ने कुछ अपलोड कर दिया तो फिर मेरी बदनामी होगी। आप भारतीय समाज को जानते हैं। मैं कहीं की नहीं रहूँगी। मैंने कई बार राजेन्द्र यादव को फोन किया और एक बार प्रमोद को भी फोन किया- ‘आप सच बोल रहे हैं या कोई मजाक कर रहे हैं। क्या है उस वीडियो में?’

उसने ढंग से बात नहीं की। उसका जवाब था- ‘जब दुनिया देखेगी, तुम भी देख लेना।’

जब कई बार फोन करने के बाद भी राजेन्द्र यादव ने मेरी बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया फिर मैंने उन्हें फोन करके कहा कि मैं शाम में आपके घर आ रही हूँ। यह छोटी बात नहीं है। आप प्रमोद से बात करिए।

मेरे साथ जो दुर्घटना हुई, उसके बाद मैने लोगों से बातचीत बंद कर दी थी। अब जब फिर से बातचीत हो रही है तो यह सुनने में आ रहा है कि कुछ लोग कह रहे हैं- ज्योति अगर राजेन्द्र यादव के घर में कुछ गलत काम नहीं कर रही थी, राजेन्द्र यादव के साथ उसके नाजायज संबंध नहीं थे फिर वह वीडियो की बात से डरी क्यों? यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि यह वीडियो मेरा और राजेन्द्र यादव का होता तो मैं बिल्कुल नहीं डरती। ना मैं घबराती, वजह यह कि प्रमोद राजेन्द्र यादव के पास काम करता था, फिर क्या वह अपने मालिक का वीडियो अपलोड करता? अपलोड करता तो क्या सिर्फ ज्योति की बदनामी होती? क्या राजेन्द्र यादव की नहीं होती। राजेन्द्र यादव का कद बड़ा है। उनकी बदनामी भी बड़ी होती। यदि वे सेफ होते तो मैं भी सेफ होती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। वे मुझे बेटी तुल्य मानते रहे थे। मेरे लिए वे पितातुल्य थे। इसका मतलब था कि यदि प्रमोद ने कोई वीडियो वास्तव में बनाया था तो वह मेरी अकेली की वीडियो होगी। मैं राजेन्द्र यादव के यहाँ काम करती थी तो उनका बाथरूम भी इस्तेमाल करती थी। राजेन्द्र यादव से मेरी घनिष्ठता हो ही गई थी। कई बार जब मेरे घर पानी नहीं आया होता तो राजेन्द्र यादव कहते थे- मेरे घर आ जाओ। डिक्टेशन ले लो और यहीं पर नहा लेना। उनके बाथरूम का कई बार मैने इस्तेमाल नहाने के लिए किया है। मेरा डर यही था, बाथरूम में नहाते हुए कैमरा छुपाकर मेरा नेकेड वीडियो प्रमोद, राजेन्द्र यादव के घर में बना सकता है। एक अकेली लड़की का नेकेड वीडियो जब इंटरनेट पर डाला जाता है तो बिल्कुल नहीं देखा जाता कि वह अकेली है या फिर किसी के साथ है। यदि लड़की वीडियों में नेकेड है तो उसकी बदनामी होनी है, उसकी परेशानी होनी है। इस बात से मैं डरी थी। यदि राजेन्द्र यादव के साथ कोई वीडियो होता फिर डर की कोई बात नहीं थी। यदि राजेन्द्र यादव सेफ हैं तो उनके साथ वाला भी सेफ है।


वीडियो वाली बात से मैं काफी परेशान थी। परेशान होकर मैं राजेन्द्र यादव के घर पहुँची। एक जुलाई को 6.30-6.45 बजे शाम में। मैंने राजेन्द्र यादव से कहा- ‘सर आप मेरे सामने प्रमोद से बात करें कि वह क्या वीडियो है? वह दिखलाए।’

मैं राजेन्द्र यादव को सर ही कहती हूँ। उनका जवाब था- ‘मैं प्रमोद को कुछ नहीं कहूँगा। उसे बुला देता हूँ , तुम खुद ही उससे बात कर लो।’

यह बातचीत राजेन्द्र यादव के कमरे में हुई। वे उस वक्त शराब पी रहे थे। उनके सामने ही प्रमोद ने अपशब्दों का प्रयोग किया। यह मामला अभी न्यायालय में है। प्रमोद यह आलेख लिखे जाने तक जेल में है। इस पूरी घटना में दुखद पहलू यह है कि यह सब एक ऐसे आदमी की नजरों के सामने हुआ जिसकी छवि देश में स्त्रियों के हक में खड़े व्यक्ति के तौर पर है। वह मुकदर्शक बनकर अपने कर्मचारी द्वारा एक स्त्री के लिए प्रयोग किए जा रहे अशालीन भाषा को सुनता रहा। वे उस वक्त भी शराब पीने में मशगूल थे, जब उनका कर्मचारी स्त्री के साथ अमर्यादित व्यवहार कर रहा था। इस पूरी घटना के दौरान राजेन्द्र यादव बीच में सिर्फ एक वाक्य प्रमोद को बोले- ‘यार कुछ है तो दिखा दे ना...’

मानों छुपन छुपाई के खेल में चॉकलेट का डब्बा गुम हो गया हो। जबकि प्रमोद कई बार राजेन्द्र यादव के सामने धमका चुका था- वीडियो इंटरनेट पर अपलोड कर दूँगा। फिर भी वे चुप थे। मैं भी चुप हो जाती। कोई कदम नहीं उठाती लेकिन उसके बाद जो प्रमोद ने किया वह किसी भी स्त्री के लिए अपमानजनक था। मामला न्यायालय में है इसलिए उस संबंध में यहाँ नहीं बता रहीं हूँ। मेरे साथ जो हुआ, उसके बाद मैं समझ गई थी कि मेरा अब यहाँ से बच कर निकलना नामुमकिन है। मैंने राजेन्द्र यादव के कमरे में रखे टेलीफोन से सौ नंबर मिलाया। उस वक्त राजेन्द्र यादव बोले- ‘यह क्या कर रही हो? फोन रख।’ तब तक दूसरी तरफ फोन उठ चुका था। मैंने फोन पर सारी बात बता दी। मेरे साथ क्या हुआ और मुझे मदद की जरूरत है।

फोन रखने के बाद अब तक शांत पड़े राजेन्द्र यादव फिर बोले- ‘यह सब क्या कर रही हो? पुलिस के आने से क्या हो जाएगा? बेवजह बात ना बढ़ा।’

पुलिस को फोन मिलाने के बाद प्रमोद शांत हो गया था। राजेन्द्र यादव ने अब प्रमोद से कहा- ‘तू जा यहाँ से।’ उनकी आज्ञा मिलते ही प्रमोद आज्ञाकारी बच्चे की तरह चला गया। अब राजेन्द्र यादव ने मुझसे कहा- पुलिस को कुछ नहीं बताना है। मैंने कहा- ‘यह नहीं होगा सर। आपके सामने, आपके घर में इतनी बुरी हरकत हुई है मेरे साथ। आपसे मैं बार-बार फोन पर कहती रही कि आप प्रमोद से बात कीजिए लेकिन आपने वह भी नहीं किया। अब मैं पुलिस को सारी बात बताऊँगी।’

यदि मेरे मन में कोई चोर होता तो मैं वहाँ डर जाती। मेरे मन में कोई चोर नहीं था, इसलिए मैं डरी नहीं। मेरे अंदर सिर्फ इतनी बात थी कि मेरे साथ जो हुआ है, वह गलत हुआ है। इसलिए मैं पुलिस में शिकायत करूँगी।

राजेन्द्र यादव लगातार मुझे समझाते रहे कि पुलिस में शिकायत करने से कुछ नहीं होगा। सौ नंबर पर उन्होंने रिडायल किया, शायद यह कन्फर्म करने के लिए कि उनके घर से पुलिस के पास फोन गया था या नहीं? जब उधर से कहा गया कि फोन आया था तो यादवजी ने कहा- ‘अब पुलिस को भेजने की जरूरत नहीं है। आपसी मारपीट थी। अब सुलझ गया सब कुछ।’

मैं वहीं बैठी थी। मैने दुबारा फोन मिलाया कि पुलिस अभी तक नहीं आई? दूसरी तरफ से मुझसे सवाल पूछा गया- ‘मैडम आप इतनी सुरक्षित तो हैं ना, जितनी देर में पुलिस आप तक पहुँच सके?’

मैंने कहा- सुरक्षित हूँ। प्रमोद बाहर बैठा है और राजेन्द्र यादव फोन पर किसी से बात कर रहे हैं।

पुलिस आई। उन्होंने प्रमोद को थाने ले जाने के लिए पकड़ा। साथ में मुझे भी बयान के लिए ले जा रहे थे। राजेन्द्र यादव ने पुलिस वाले से कहा- ‘क्या इतनी छोटी सी बात के लिए ले जा रहे हो? बैठो यहाँ। स्कॉच लोगे या व्हीस्की? मेरे पास 21 साल पुरानी शराब है। एक से एक अच्छी शराब है। कहो क्या लोगे?’

लेकिन पुलिस वाले ने कहा- ‘सर लड़की के साथ ऐसा हुआ है। यह छोटी बात नहीं है।’

मेरा कुर्ता खींच-तान में फट गया था। मेरे पास ऐसी खबर आ रही है कि कुछ लोग कह रहे हैं कि ज्योति ने खुद ही अपने कपड़े फाड़ लिए। कोई भी लड़की पहली बात इतनी बेशरम नहीं होती कि अपने कपड़े खुद फाड़ ले। यदि फाड़ेगी तो उसका उद्देश्य क्या होगा? सामने वाले पर इल्जाम लगाना। मैने इसके लिए प्रमोद पर आरोप नहीं लगाया है। मैंने कहा है कि यह खींच-तान में फटा है।

प्रमोद राजेन्द्र यादव के पास अप्रैल में आया है। वह राजेन्द्र यादव के घर में रहता है। उनके कमरे में सोता है। उसकी गिरफ्तारी भी राजेन्द्र यादव के घर से हुई थी।


10 टिप्‍पणियां:

  1. aagr aap ki baat mein sachai hai to aap chinta na kare or apne nyaye k liye lade tani ki stri ka astitav aise logo k chungl se bcha rhe v sachai sabh k samne aaye or chdmvadi log ke cehre se naqab utr sake,.....

    जवाब देंहटाएं
  2. बेशक, राजेंद्र यादवों की यह दुनिया स्त्रियॉं के लिए सुरक्शित नहीं हो सकती!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. साहित्य की दुनिया में भी आसाराम जैसे लोग हैं...

    जवाब देंहटाएं
  4. उपरोक्‍त लेख में ज्‍योति कुमारी ने यह भी कहा है और मामले को इस रोशनी में ही देखना न्‍यायसंगत होगा ...

    ''यहां स्पष्ट कर दूं कि यह वीडियो मेरा और राजेन्द्र यादव का होता तो मैं बिल्कुल नहीं डरती। ना मैं घबरातीं, वजह यह कि प्रमोद राजेन्द्र यादव के पास काम करता था, फिर क्या वह अपने मालिक का वीडियो अपलोड करता? अपलोड करता तो क्या सिर्फ ज्योति की बदनामी होती? क्या राजेन्द्र यादव की नहीं होती। राजेन्द्र यादव का कद बड़ा है। उनकी बदनामी भी बड़ी होती। यदि वे सेफ होते तो मैं भी सेफ होती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। वे मुझे बेटी तुल्य मानते रहे थे। मेरे लिए वे पितातुल्य थे। इसका मतलब था कि यदि प्रमोद ने कोई वीडियो वास्तव में बनाया था तो वह मेरे अकेले की वीडियो होगी। मैं राजेन्द्र यादव के यहां काम करती थी तो उनका बाथरूम भी इस्तेमाल करती थी। राजेन्द्र यादव से मेरी घनिष्ठता हो ही गई थी। कई बार जब मेरे घर पानी नहीं आया होता तो राजेन्द्र यादव कहते थे- मेरे घर आ जाओ। डिक्टेशन ले लो और यहीें पर नहा लेना। उनके बाथरूम का कई बार मैने इस्तेमाल नहाने के लिए किया है। मेरा डर यही था, बाथरूम में नहाते हुए कैमरा छुपाकर मेरा नेकेड वीडियो प्रमोद, राजेन्द्र यादव के घर में बना सकता है। एक अकेली लड़की का नेकेड वीडियो जब इंटरनेट पर डाला जाता है तो बिल्कुल नहीं देखा जाता कि वह अकेली है या फिर किसी के साथ है। यदि लड़की वीडियों में नेकेड है तो उसकी बदनामी होनी है, उसकी परेशानी होनी है। इस बात से मैं डरी थी। यदि राजेन्द्र यादव के साथ कोई वीडियो होता फिर डर की कोई बात नहीं थी।''

    जवाब देंहटाएं
  5. kuch v ho yr ye hindi or hindustan ka naam kharab ho raha h, ho v sakta h or nahi v , Q ki kabhi kabhi vo ho jata h jo kabhi nahi hona chahiye, ....

    जवाब देंहटाएं
  6. राजेन्द्र यादव स्त्री शोषण के मामले में हमेशा विवादों में रहें हैं और प्रेमचंद की पत्रिका 'हंस' का नाम वाली पत्रिका का सम्पादन करके 'हंस. का भी नाम बदनाम कर रहे हैं |

    जवाब देंहटाएं
  7. ज्योति को इस साहस के लिए बधाई और दूर तक लड़ते रहने की शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  8. ज्योति पर आक्षेप लग सकते हैं किंतु सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राजेन्द्र यादव संदेह के घेरे में आ चुके हैं। यहाँ दो विषय बन चुके हैं एक तो स्त्री के साथ पुरुष का दुर्व्यवहार और दूसरा एक साहित्यकार का नैतिक पतन । दोनो ही विषय गंभीर और चिंतनीय हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. jyoti ji ko badhaee apni asmita ke liye sangharsh karna hee chahie. rajendr yadav ke nidhan ke baad ve bhavuk n hon aur pramod ko dandit karakar hee dam len.

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।अग्रिम आभार जैसे शब्द कहकर भी आपकी सदाशयता का मूल्यांकन नहीं कर सकती।आपकी इन प्रतिक्रियाओं की सार्थकता बनी रहे इसके लिए आवश्यक है कि संयतभाषा व शालीनता को न छोड़ें.

Related Posts with Thumbnails