"राम के नाम पर यह कैसा काम ? लड़के पिएँ तो कुछ नहीं और लड़कियाँ पिएँ तो हराम ? पब से सिर्फ़ लड़कियों को पकड़ना, घसीटना और मारना - इसका मतलब क्या हुआ? क्या यह नहीं कि हिंसा करने वाले को शराब की चिंता नहीं है बल्कि लड़कियों की चिंता है। वे शराब-विरोधी नहीं हैं, स्त्री-विरोधी हैं। यदि शराब पीना बुरा है, मदिरालय में जाना अनैतिक है, भारतीय सभ्यता का अपमान है, तो क्या यह सब तभी है, जब स्त्रियाँ वहाँ जाएँ? यदि पुरुष जाए तो क्या यह सब ठीक हो जाता है? इस पुरुषवादी सोच का नशा अंगूर की शराब के नशे से ज्यादा खतरनाक है। शराब पीकर पुरुष जितने अपराध करते हैं, उस से ज्यादा अपराध वे पौरुष की अकड़ में करते हैं। इस देश में पत्नियों के विरूद्ध पतियों के अत्याचार की कथाएँ अनंत हैं। कई मर्द अपनी बहनों और बेटियों की हत्या इसलिए कर देते हैं कि उन्होंने गैर-जाति या गैर- मजहब के आदमी से शादी कर ली थी। जीती हुई फौजें हारे हुए लोगों की स्त्रियों से बलात्कार क्यों करती हैं ? इसलिए कि उन पर उनके पौरुष का नशा छाया रहता है। बैगलूर के तथाकथित राम-सैनिक भी इसी नशे का शिकार हैं। उनका नशा उतारना बेहद जरूरी है। स्त्री-पुरुष समता का हर समर्थक उनकी गुंडागर्दी की भर्त्सना करेगा।"
सामयिक घटना पर केंद्रित विचारोत्तेजक व संतुलित लेख -
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