शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

नारी अभिव्यक्ति का एक सशक्त ऐतिहासिक प्रयास : नूशु लिपि

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- श्रीश बेंजवाल 



मनुष्य मन हमेशा से स्वयं को अभिव्यक्त करने का इच्छुक रहा है। इसके लिये उसने विभिन्न भाषायें एवं लिपियाँ बनायी। दुनिया में अनेक भाषायें एवं लिपियाँ हैं। हाल ही में पुरानी लिपियों के बारे में पढ़ते हुये मुझे नूशु नामक एक रुचिकर एवं कम जानी जाने वाली चीनी लिपि का पता चला। नूशु का शाब्दिक अर्थ है 'महिलाओं का लेखन', नाम के अनुसार ही यह लिपि विशिष्ट रूप से महिलाओं द्वारा बनायी गयी एवं महिलाओं द्वारा ही प्रयोग की जाती थी।


अरब की तरह चीनी परम्परागत समाज में महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा का अधिकार नहीं था। परम्परागत चीनी समाज पुरुषों के वर्चस्व वाला था जिसमें लड़कियों को शिक्षा की मनाही थी। इस दौरान दक्षिण चीन के दूरदराज के प्रान्त हुनान के जियांगयोंग क्षेत्र में नूशु नामक एक गुप्त लिपि विकसित हुयी। सैकड़ों सालों में गुप्त रूप से महिलाओं द्वारा ही इसका विकास एवं प्रयोग हुआ। सैकड़ों साल पुरानी इस लिपि के जन्म के समय का सटीक अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता।


यह लिपि चीनी की तरह चित्रलिपि है। यह हुनान प्रान्त के जियांगजांग क्षेत्र के कुछ हिस्सों में बोली जाने वाली तुहुआ नामक चीनी बोली के लेखन हेतु प्रयोग की जाती है। कुछ वर्णचिह्न चीनी से लिये गये हैं जबकि कुछ अलग से विकसित किये गये हैं। चीनी की तरह नूशु ऊपर से नीचे स्तम्भों में लिखी जाती है तथा स्तम्भ दायें से बायें को लिखे जाते हैं। नूशु में लिखा गया कुछ साहित्य मौजूद है।


२०वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में चीन में आये सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों के पश्चात महिलाओं की शिक्षा में भागीदारी बढ़ी और नई पीढ़ी की महिलाओं ने नूशु को सीखना बन्द कर दिया। इससे धीरे-धीरे यह प्रयोग से बाहर होती गयी। इसे जानने वाली पुरानी महिलाओं की मृत्यु के साथ-साथ इसका प्रचलन घटता रहा। १९३० में चीन में जापान के आधिपत्य के दौरान जापानियों ने इस लिपि के प्रयोग को दबाने का प्रयास किया क्योंकि उन्हें भय था कि इसका प्रयोग चीनी गुप्त सन्देश भेजने के लिये कर सकते थे। १९६६-७६ के दशक में चीनी सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान भी इसका प्रयोग घटा। इसका वास्तविक लेखन करने वाली अन्तिम दो महिलाओं की क्रमशः १९९० तथा २००४ में मृत्यु हो गयी। वर्तमान में यह लिपि लगभग मृतप्राय है। इसे जानने वाले कुछ शोधकर्ता ही हैं जिन्होंने इसे जानने वाली कुछ अन्तिम महिलाओं से सीखा था। इसके संरक्षण हेतु सरकारी स्तर पर कोई विशेष प्रयास नहीं किये गये। यह दुःखद होगा कि नारी सशक्तिकरण का यह प्रतीक भविष्य की पीढ़ियों के लिये लुप्त हो जायेगा। कुछ संस्थाओं द्वारा इसके संरक्षण हेतु कुछ प्रयास किये गये हैं। इसके यूनिकोडकरण भी प्रस्तावित है।


नूशु के जन्म की कहानी रुचिकर है तथा नारीवाद के इतिहास में एक सशक्त हस्ताक्षर है। यह अभिव्यक्ति के लिये नारी की इच्छा एवं संघर्ष को दर्शाती है। एक-दो अन्य भाषाओं एवं लिपियों का भी महिलाओं से सम्बन्ध रहा है पर नूशु एकमात्र लिपि है जो कि पूरी तरह से महिलाओं को समर्पित कही जा सकती है। नूशु के बारे में अधिक जानकारी के लिये विकिपीडिया पर यह लेख पढ़ें। एक नूशु शोधकर्ता द्वारा बनायी गयी वर्ल्ड ऑफ नूशु नामक वेबसाइट भी पठनीय है।

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