
एकालाप
'न' कहने की सज़ा
-------------------
- उन्होंने जोरों से घोषणा की :
अब से तुम आजाद हो,अपनी मर्जी की मालिक.- मुझे लगा,मैं अब अपने सारे निर्णय ख़ुद लूंगी,इन देवताओं का बोझ कंधों पर न ढोना पड़ेगा.- मैंने खुले आसमान में उड़ान भरी ही थी कि फ़रिश्ते आ गए. बोले-हमारे साथ चलो.हम तुम्हें अमृत के पंख देंगे.- मैंने इनकार कर दिया.मेरा अकेले उड़ने का मन था.. - फ़रिश्ते आग-बबूला हो गए.उनके अमृतवर्षी पंख ज्वालामुखी बन गए.गंधक और तेजाब की बारिश में मैं झुलस गई.- सर्पविष की पहली ही फुहार ने मेरी दृष्टि छीन ली और मेरी त्वचा को वेधकर तेजाब की जलन एक एक धमनी में समाती चली गई.- मैं तड़प रही हूँ.फ़रिश्ते जश्न मना रहे हैं - जीत का जश्न.- जब जब वे मुझसे हारे हैं उन्होंने यही तो किया है.- जब जब मैंने अपनी राह ख़ुद चुनी ,जब जब मैंने उन्हें 'ना' कहा,तब तब या तो मुझे आग के दरिया में कूदना पड़ाया उन्होंने अपने अग्निदंश सेमुझे जीवित लाश बना दिया.- जब जब मैंने अपनी राह ख़ुद चुनी,जब जब मैंने उन्हें 'ना' कहातब तब या तो मुझे धरती में समाना पडाया महाभारत रचाना पड़ा.- मैंने कितने रावणों के नाभिकुंड सोखे कितने दुर्योधनों के रक्त से केश सींचेकितनी बार मैं महिषमर्दिनी से लेकर दस्युसुंदरी तक बनीकितनी बार....कितनी बार...- पर उनका तेजाब आज भी अक्षय हैघृणा का कोश लिए फिरते हैं वे अपने प्राणों में ;और जब भी मेरे होठों से निकलती है एक 'ना' तो वे सारी नफरत सारा तेजाब उलट देते हैं मेरे मुँह पर . - मैं अब नरक में हूँअन्धकार और यातना के नरक में . - अब मुझे नींद नहीं आतीआते हैं जागती आँखों डरावने सपने.नहीं,उड़ान के सपने नहीं,आग के सपने तेजाब के सपने साँपों के सपनेयातनागृहों के सपनेवैतरणी के सपने .. - यमदूतो ! मुझे नरक में तो जीने दो!!-ऋषभ देव शर्मा

