कृतारथ कर दिया ओ माँ !
कृतारथ कर दिया ओ माँ !
सृजन की माल का मनका बना कर जो ,
कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !
*
सिरजती एक नूतन अस्ति अपने ही स्वयं में रच ,
इयत्ता स्वयं की संपूर्ण वितरित कर परं के हित ,
नए आयाम सीमित चेतना को दे दिए तुमने,
विनश्वर देह को तुमने सकारथ कर दिया ओ माँ !
*
बहुत लघु आत्म का घेरा, कहीं विस्तृत बना तुमने,
मरण को पार करता अनवरत क्रम जो रचा तुमने ,
कि जो कण-कण बिखर कर विलय हो कर नाश में मिलता ,
नया चैतन्य का वाहन पदारथ* कर दिया ओ माँ !
कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !
*पदारथ = मणि
- प्रतिभा सक्सेना