गुरुवार, 13 मई 2010

कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !

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कृतारथ कर दिया ओ माँ !



कृतारथ कर दिया ओ माँ !


सृजन की माल का मनका बना कर जो , 
कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !

*

सिरजती एक नूतन अस्ति अपने ही स्वयं में रच ,
इयत्ता स्वयं की संपूर्ण वितरित कर परं के हित ,
नए आयाम सीमित चेतना को दे दिए तुमने, 
विनश्वर देह को तुमने सकारथ कर दिया ओ माँ !

*

बहुत लघु आत्म का घेरा, कहीं विस्तृत बना तुमने,
मरण को पार करता अनवरत क्रम जो रचा तुमने ,
कि जो कण-कण बिखर कर विलय हो कर नाश में मिलता ,
नया चैतन्य का वाहन पदारथ* कर दिया ओ माँ !
कि नारी तन मुझे देकर कृतारथ कर दिया ओ माँ !

*पदारथ = मणि

- प्रतिभा सक्सेना 


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