रविवार, 25 सितंबर 2011

पुत्री दिवस पर २ विदारक कविताएँ : डेथ सर्टिफिकेट / पगफेरा

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बेटी की मृत्यु पर एक पिता की हृदयविदारक चीख -- 

मूल गुजराती लेखिका : एषा दादावाला
अनुवाद : सागरचंद नाहर
अनुवाद सहयोग : कविता वर्मा 






युवा कवयित्री एषा दादावाला (सूरत)  की अन्य  गुजराती कविताओं के लिए देखें यहाँ `वरतारो' 









डेथ सर्टिफिकेट 



प्रिय बिटिया
तुम्हें याद होगा
जब तुम छोटी थी,
ताश खेलते समय
तुम जीतती और मैं हमेशा हार जाता

कई बार जानबूझ कर भी !
जब तुम किसी प्रतियोगिता में जाती
अपने तमाम शील्ड्स और सर्टिफिकेट
मेरे हाथों में रख देती
तब मुझे तुम्हारे पिता होने का गर्व होता
मुझे लगता मानों मैं
दुनिया का सबसे सुखी पिता हूँ

तुम्हें अगर कोई दु:ख या तकलीफ थी
एक पिता होने के नाते ही सही,
मुझे कहना तो था
यों अचानक
अपने पिता को इतनी बुरी तरह से
हरा कर भी कोई खेल जीता जाता है कहीं?

तुम्हारे शील्ड्स और सर्टिफिकेट्स
मैने अब तक संभाल कर रखे हैं

अब क्या तुम्हारा “डेथ सर्टिफिकेट” भी
मुझे ही संभाल कर रखना होगा ?



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पगफेरा




बिटिया को अग्‍निदाह दिया,
और उससे पहले ईश्‍वर को,
दो हाथ जोड़ कर कहा,
सुसराल भेज रहा हौऊं,
इस तरह बिटिया को,
विदा कर रहा हूँ,
ध्यान तो रखोगे ना उसका?
और उसके बाद ही मुझमें,
अग्निदाह देने की ताकत जन्मी !
लगा कि ईश्‍वर ने भी मुझे अपना
समधी बनाना मंजूर कर लिया

और जब अग्निदाह देकर वापस घर आया
पत्‍नी ने आंगन में ही पानी रखा था
वहीं नहा कर भूल जाना होगा
बिटिया के नाम को

बिना बेटी के घर को दस दिन हुए
पत्नी की बार-बार छलकती आँखें
बेटी के व्यवस्थित पड़े
ड्रेसिंग टेबल और वार्डरोब
पर घूमती है
मैं भी उन्हें देखता हूँ और
एक आह निकल जाती है

ईश्‍वर ! बेटी सौंपने से पहले
मुझे आपसे रिवाजों के बारे में
बात कर लेनी चाहिए थी
कन्या पक्ष के रिवाजों का
मान तो रखना चाहिए आपको
दस दिन हो गए....

और हमारे यहाँ पगफेरे का रिवाज है !



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