गुरुवार, 22 जनवरी 2009

सत-बहिनी

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सत-बहिनी

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{ भारत में कत्थई-भूरे रंग की पीली चोंचवाली चिड़ियाँ होती हैं जिनका का पूरा झुंड पेड़ों पर या क्यारियों में आँगन में उतर कर चहक-चहक कर खूब शोर मचाता है ।उनके विषय में एक लोक- कथा प्रचलित है - सात बहनें थी,और सबसे छोटा एक भाई। सातों बहनें एक ही गाँव में ब्याही थीं।
....... आगे कथा इस प्रकार चलती है
-}



अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत-बहिनी !
बिरछन पे चिक-चिक ,
किरैयन में किच
-किच,
चोंचें नचाइ पियरी पियरी
!
चिरैयाँ सत-बहिनी !

एकहि गाँव बियाहिल सातो बहिनी,मइके अकेल छोट भइया ,
'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा ' कहि के पठाय दिहिल मइया !
'माई पठाइल रे भइया ,
मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !'

सात बहिन घर आइत-जाइत ,मुख सुखला ,थक भइला ,
साँझ परिल तो माँगि बिदा भइया आपुन घर गइला !
अगिल भोर पनघट पर हँसि-हँसि बतियइली सतबहिनी !

हमका दिहिन भैया सतरँग लँहगा, हम पाये पियरी चुनरिया ,
सेंदुर-बिछिया हमका मिलिगा ,हम बाहँन भर चुरियाँ !
भोजन पानी कौने कीन्हेल अब बूझैं सतबहिनी!

का पकवान खिलावा री जिजिया ? मीठ दही तू दिहली ?
री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली ?
तू-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सतबहिनी !

भूखा-पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली ,
दधि-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली ,
उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ-रोइ सतबहिनी !

'
तुम ना खबाएल जेठी ?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं
एकल हमार भइया, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं !
साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सतबहिनी!



- प्रतिभा सक्सेना




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