अभी-अभी एक ब्लॉग पर एक ऐसी पोस्ट पढने को मिली कि जी एकदम तिलमिला गया है। जिसमें यह कुतर्क किया गया है कि
" दूसरी बात, पुरुषों से अधिक स्त्रियां बलात्कार करती हैं, लेकिन वे मानसिक सतह पर करती हैं इस कारण बच जाती हैं. समाज में जहां भी देखें आज अधनंगी स्त्रियां दिखती हैं. पुरुष की वासना को भडका कर स्त्रियां जिस तरह से उनका मानसिक शोषण करती हैं वह पुरुषों का सामूहिक बलात्कार ही है. किसी जवान पुरुष से पूछ कर देखें. पुरुष को सजा हो जाती है, लेकिन किसी स्त्री को कभी इस मामले में सजा होते आपने देखा है क्या."
इस कुतर्क के लिए मेरा उत्तर है कि ----
यदि इस प्रकार से बलात्कार के आंकड़े बनाए जाने लगें तो क्या ही बढिया हो. क्योंकि आप जिस मानसिक बलात्कार की बात कह रहे हैं, उसे तो हर आयु की स्त्री - क्या बूढी,क्या बच्ची, क्या जवान , क्या कुरूप या पगली तक भी, दिन रात झेलती है. आँखों आँखों तक में उसे निगल जाने वाले, छेड़ने वाले, चुहल करने वाले, भद्दे कमेंट्स करने वाले, मजाक उड़ाने वाले आदि- आदि- आदि- आदि से गुज़री लाखों लाख बलात्कृताएं ही नहीं, अरबों बलात्कृताएं मिल जाएँगी. इन में यदि ऐसे आंकड़ें भी सम्मिलित कर लिए जाएँ कि कौन पुरूष किस - किस स्त्री की कल्पना- मात्र से कब कब स्खलित हुआ तो इस संसार के ९९% पुरुष इस मानसिक बलात्कार के दोषी हैं. स्त्री के लिए तो इस मानसिक बलात्कार की सजा का प्रावधान बहुत हक़ में ही जाएगा.
और जनाब ज़रा यह बता दें कि जिन के साथ बलात्कार होता है क्या वे अभी गत १५-२० वर्ष की ही स्त्रियाँ हैं? क्योंकि भई, उस से पहले तो स्त्रियाँ साडी सलवार आदि वस्त्रों में ही तो रहा करती थीं, उन्हें देख कर उत्तेजित हो कर आक्रमण करने वाले पुरुषों को किस वस्त्राधारित तर्क की जरूरत से सही सिद्ध करेंगे? यह तो वही हुआ कि गाजर बड़ी रसीली दिख गयी तो हड़प ली. दोष तो उस गाजर का ही है न कि भला वह इतनी रसीली थी ही क्यों और वह मेरी नजर में आई ही क्यों? घूंघटों व परदों में छिपी स्त्रियों से बलात्कार का अनुपात सर्वाधिक रहता आया है,यह सर्व विदित है।
कितने भी भोथरे तर्क गढ़ कर आप पाप को पाप कहने से रोकने की जद्दोजहद करते रहें, पर पाप पाप ही रहेगा. और वह पलट पलट कर कुतर्क रचने को बाधित करेगा, जिनकी नंगी सच्चाई से मुँह फेरने के चक्कर में और- और नंगई दिखेगी.
" दूसरी बात, पुरुषों से अधिक स्त्रियां बलात्कार करती हैं, लेकिन वे मानसिक सतह पर करती हैं इस कारण बच जाती हैं. समाज में जहां भी देखें आज अधनंगी स्त्रियां दिखती हैं. पुरुष की वासना को भडका कर स्त्रियां जिस तरह से उनका मानसिक शोषण करती हैं वह पुरुषों का सामूहिक बलात्कार ही है. किसी जवान पुरुष से पूछ कर देखें. पुरुष को सजा हो जाती है, लेकिन किसी स्त्री को कभी इस मामले में सजा होते आपने देखा है क्या."
इस कुतर्क के लिए मेरा उत्तर है कि ----
यदि इस प्रकार से बलात्कार के आंकड़े बनाए जाने लगें तो क्या ही बढिया हो. क्योंकि आप जिस मानसिक बलात्कार की बात कह रहे हैं, उसे तो हर आयु की स्त्री - क्या बूढी,क्या बच्ची, क्या जवान , क्या कुरूप या पगली तक भी, दिन रात झेलती है. आँखों आँखों तक में उसे निगल जाने वाले, छेड़ने वाले, चुहल करने वाले, भद्दे कमेंट्स करने वाले, मजाक उड़ाने वाले आदि- आदि- आदि- आदि से गुज़री लाखों लाख बलात्कृताएं ही नहीं, अरबों बलात्कृताएं मिल जाएँगी. इन में यदि ऐसे आंकड़ें भी सम्मिलित कर लिए जाएँ कि कौन पुरूष किस - किस स्त्री की कल्पना- मात्र से कब कब स्खलित हुआ तो इस संसार के ९९% पुरुष इस मानसिक बलात्कार के दोषी हैं. स्त्री के लिए तो इस मानसिक बलात्कार की सजा का प्रावधान बहुत हक़ में ही जाएगा.
और जनाब ज़रा यह बता दें कि जिन के साथ बलात्कार होता है क्या वे अभी गत १५-२० वर्ष की ही स्त्रियाँ हैं? क्योंकि भई, उस से पहले तो स्त्रियाँ साडी सलवार आदि वस्त्रों में ही तो रहा करती थीं, उन्हें देख कर उत्तेजित हो कर आक्रमण करने वाले पुरुषों को किस वस्त्राधारित तर्क की जरूरत से सही सिद्ध करेंगे? यह तो वही हुआ कि गाजर बड़ी रसीली दिख गयी तो हड़प ली. दोष तो उस गाजर का ही है न कि भला वह इतनी रसीली थी ही क्यों और वह मेरी नजर में आई ही क्यों? घूंघटों व परदों में छिपी स्त्रियों से बलात्कार का अनुपात सर्वाधिक रहता आया है,यह सर्व विदित है।
कितने भी भोथरे तर्क गढ़ कर आप पाप को पाप कहने से रोकने की जद्दोजहद करते रहें, पर पाप पाप ही रहेगा. और वह पलट पलट कर कुतर्क रचने को बाधित करेगा, जिनकी नंगी सच्चाई से मुँह फेरने के चक्कर में और- और नंगई दिखेगी.