
जन्नत
 बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये !
 वाह क्या बात है !
 यह है जन्नत का नज़ारा !
 यहाँ तो चार पर ही मन मार कर रह जाना पड़ता है,
 और वे चारों भी समय के साथ ,
 कितनों की माँ बन-बन कर हो जाती हैं रूढ़ी, पुरानी ,
 अल्लाह की रहमत !
 बहत्तर कुआँरियां ,
 हमेशा जवान रहेंगी, हर समय तुम्हारा मुँह देखेंगी, राह तकेंगी !
 न माँ,  न बहन, न बेटी,
 ये सब फ़लतू के रूप हैं औरत के ! 
 सामने न आयें !
 बस बहत्तर कुआँरियाँ और दिन रात भोग-विलास !
 और हमें क्या चाहिये !
 अल्लाह को ख़ुश करने के लिये,
 सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें,
 बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें !
           -  डॉ.प्रतिभा सक्सेना
 
