शनिवार, 3 जनवरी 2009

जन्नत : बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये

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जन्नत


बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये !
वाह क्या बात है !
यह है जन्नत का नज़ारा !
यहाँ तो चार पर ही मन मार कर रह जाना पड़ता है,
र वे चारों भी समय के साथ ,
कितनों की माँ बन-बन कर हो जाती हैं रूढ़ी, पुरानी ,
अल्लाह की रहमत !
बहत्तर कुआँरियां ,
हमेशा जवान रहेंगी, हर समय तुम्हारा मुँह देखेंगी, राह तकेंगी !
न माँ, न बहन, न बेटी,
ये सब फ़लतू के रूप हैं औरत के !
सामने न आयें !
बस बहत्तर कुआँरियाँ और दिन रात भोग-विलास !
और हमें क्या चाहिये !
अल्लाह को ख़ुश करने के लिये,
सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें,
बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें !
- डॉ.प्रतिभा सक्सेना






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