मंगलवार, 23 सितंबर 2008

राजा-रानी आधा-आधी

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राजा-रानी आधा-आधी
- राजकिशोर






राजा-रानी का मुहावरा सुनने में बहुत मधुर लगता है। यह आभास भी होता है कि दोनों की हैसियत एक बराबर है। लेकिन इससे बड़ा भ्रम कुछ और नहीं हो सकता। राजा रानी का पति नहीं है, बल्कि रानी राजा की पत्नी है। राज्य का स्वामी राजा है, रानी का उसमें कोई हिस्सा नहीं है। रानी के आने के पहले भी राजा राजा था, लेकिन राजा से परिणय के पहले रानी रानी नहीं थी। यानी राजा रानी के रुतबे में कुछ वृद्धि करता है, पर रानी राजा के रुतबे में कोई वृद्धि नहीं करती। वह राजा के गले में पड़ी हुई माला की तरह है, जिसे राजा जब चाहे गले से निकाल कर फेंक सकता है। दिनकर की एक बहुत खूबसूरत कविता में कहा गया है --



राजा वसंत, वर्षा ऋतुओं की रानी
लेकिन, दोनों की कितनी भिन्न कहानी
राजा के मुंह में हंसी, कंठ में माला
रानी का अंतर विकल, दृगों में पानी।

और यह कोई नई बात नहीं है। दिनकर आगे कहते हैं --


लेखनी लिखे, मन में जो निहित व्यथा है
रानी की सब दिन गीली रही कथा है
त्रेता के राजा क्षमा करें यदि बोलूं
राजा-रानी की युग से यही प्रथा है।


यही बात प्रत्येक युगल -- जो राजा-रानी का ही एक रूप है -- पर लागू होती है। विवाहित स्त्री ज्यादा से ज्यादा स्त्रीधन की अधिकारिणी है। यह वह धन है जो स्त्री को विवाह के समय उपहार में मिलता है। उपहार देनेवाले उसके माता-पिता तथा अन्य संबंधी हो सकते हैं, मित्र और परिचित हो सकते हैं तथा ससुराल पक्ष के लोग भी हो सकते हैं। आम तौर पर यह स्त्रीधन भी ससुराल की सामूहिक संपत्ति का हिस्सा बन जाता है और उस पर विवाहित स्त्री अपना कोई दावा नहीं कर सकती। इस तरह स्त्री को सर्वहारा बना कर छोड़ दिया जाता है। लेकिन विवाद के समय वह चाहे तो स्त्रीधन अर्थात अपनी निजी संपत्ति को वापस माँग सकती है। व्यवहार में जो भी होता हो, कानूनी स्थिति यही है।

आम तौर पर यह स्त्रीधन भी ससुराल की सामूहिक संपत्ति काहिस्सा बन जाता है और उस पर विवाहित स्त्री अपना कोईदावा नहीं कर सकती। इस तरह स्त्री को सर्वहारा बना करछोड़ दिया जाता है। लेकिन विवाद के समय वह चाहे तोस्त्रीधन अर्थात अपनी निजी संपत्ति को वापस माँग सकती है।व्यवहार में जो भी होता हो, कानूनी स्थिति यही है।




आजकल हमारे देश में विवाद का एक नया विषय खड़ा हो गया है। नया कानून यह है कि पिता की संपत्ति में बेटियों का भी हक है। अभी तक माना जाता था कि विवाह के समय दान-दहेज के रूप में बेटी को जो दिया जाता है, वह एक तरह से पिता की संपत्ति में उसका हिस्सा ही है। विवाह के बाद उसके प्रति उसके मायकेवालों की कोई आर्थिक जिम्मेदारी नहीं रह जाती। दहेज-मृत्यु की घटनाओं को देखते हुए यह बात अत्यंत हास्यास्पद प्रतीत होती है। आज हजारों विवाहित महिलाऐं जीवित होतीं, अगर उनके माता-पिता ने उनकी ससुराल के धनपशुओं की माँग स्वीकार कर ली होती। लेकिन कानून में परिवर्तन ने स्त्रियों की वैधानिक स्थिति थोड़ी मजबूत कर दी है। अब पिता की संपत्ति में उनका हक उनके भाइयों के बराबर हो गया है।

( क्रमश: )>>>



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