शनिवार, 17 मई 2008

प्रथमा

1 टिप्पणियाँ

आज वागर्थ पर डाली प्रतिक्रिया (सन्दर्भ)


अच्छा कोई भी हो सकता है,उसमें आयु, क्षेत्र, भाषा, लिंग, वर्ग या शिक्षा-अशिक्षा आदि से अन्तर नहीं आता, इसी प्रकार बुरा भी कोई भी हो सकता है, उसके होने में भी इन चीजों का कोई अन्तर नहीं है. स्त्री मुक्ति की लड़ाई किसी वर्ग -विशेष के विरुद्ध नहीं अपितु सामन्ती मनोवृत्ति के विरुद्ध है,शोषक व शोषित के बीच है,जरूरी नहीं कि वह पुरुष ही हो.



रही बात ब्लॊग्स् पर इन सब मुद्दों को परोसने की, तो ऐसी हर चेष्टा पर समूह बना कर जाना व टिप्पणी करना ही वह लालच है, जिसके चलते सब लोग स्त्री विषयक मुद्दों को अपने ब्लॊग्स् पर लिखते हैं ताकि इस बहाने बैठे ठाले एक दिन तो चहल-पहल हो जाए उनके ब्लॊग पर और बाद में वे सब टिप्पणियों के उत्तर में एक अन्तर्दृष्टि सम्पन्न- सा वक्तव्य लिख मारेंगे कि मैंने यह सब सोच समझ कर अत्यन्त विमर्शपूर्ण तरीके से लिखा था. ब्लॊग जगत् पर अभी यह नया नया हथकण्डा है सेक्स, फ़िल्में व गॊसिप आदि की कड़ी में. अत: उन्हें अधिक तवज्जो देने की भी जरूरत नहीं है, जिनके उद्देश्य सन्दिग्ध हैं.


रही बात जयपुर या कहीं भी और या किसी भी और अपराध में महिलाओं के संलग्न होने की,तो गलत, गलत है भले किसी ने भी किया हो. फिर यह कोई पहली महिला है क्या? करोड़ों महिलाएँ भर-भर अपराध में संलिप्त हैं. जो शरीफ़ बन कर घरों में बन्द हैं, उनमें भी अधिकांश छल-कपट की घरेलू राजनीति, ईर्ष्या-द्वेष, तेरा-मेरा, ऐसी-तैसी के जघन्यतम तक के अपराध बैठे-ठाले कर लिया करती हैं. इसी लिए तो उन्हें शिक्षा व समाज के कार्यों से जोड़ने की आवश्यकता है कि उनकी ऊर्जा सकारात्मक कार्यों में लगे, न कि विध्वंस में. शोषित व्यक्ति का मनोविज्ञान समझ आने पर वे आरोपी नहीं अपितु दुष्चक्र का हिस्सा पता चलेंगी.



स्त्री मुक्ति के नाम पर जारी स्त्रिय़ों का वितण्डावाद बल व सहायता की असल अधिकारी व हकदार प्रत्येक स्त्री के विपक्ष में जाता है.
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