एकालाप
भला यह भी कोई बात हुई
कि औरत सपने देखे
कि औरत प्यार करे
कि औरत इज़हार करे!
मेरा अंग अंग रोता रहा
एक स्पर्श के लिए
और तुम
रौंदते रहे मुझे
मिट्टी समझकर.
बहुत मार खाई मैंने
तुम्हारे लिए,
तुम्हारे हाथों!
मर्दिता
बहुत मार खाई मैंने
तुम्हारे लिए ,
तुम्हारे प्यार के लिए.
मैंने सपने देखे ,
तुम्हें अपना माना
और बहुत मार खाई
पिता के हाथों,
समाज के हाथों भी :
तुम्हारे लिए ,
तुम्हारे प्यार के लिए.
मैंने सपने देखे ,
तुम्हें अपना माना
और बहुत मार खाई
पिता के हाथों,
समाज के हाथों भी :
भला यह भी कोई बात हुई
कि औरत सपने देखे
कि औरत प्यार करे
कि औरत इज़हार करे!
मेरा अंग अंग रोता रहा
एक स्पर्श के लिए
और तुम
रौंदते रहे मुझे
मिट्टी समझकर.
बहुत मार खाई मैंने
तुम्हारे लिए,
तुम्हारे हाथों!
- ऋषभ देव शर्मा
सुन्दर कविता। सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंnice poem!
जवाब देंहटाएंभला यह भी कोई बात हुई ...औरत सपने देखे , प्यार करे और इजहार ना करे ...:)...!!
जवाब देंहटाएंGreat poem... It touched.. and how true !
जवाब देंहटाएंachhi kavita...
जवाब देंहटाएंbehter prastuti...
kyaa gajab kii kavitaa likhii hai sair aapane . kamaal kar diyaa. merii badhaaii swiikaar kare.
जवाब देंहटाएंदर्द की बढ़िया अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंदर्द का समंदर - बेहद सटीक - अति सुंदर. कवियत्री को सादर धन्यवाद्
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