भरने लगे हैं जो पुराने थे घाव
अविनाश दत्त, दिल्ली
अपने जैसे लाखों लोगों की तरह 33 वर्षीय उषा चामड़ भी रोज़ सुबह निकल पड़ती थीं लोगों के घरों से मानव मल साफ़ करने के लिए। महीने भर ऐसे यंत्रणादायक काम के बाद उनके हाथ आते थे दस रुपए प्रति व्यक्ति प्रति घर.
छह साल की उम्र से विरासत में मिले इस धंधे यानी मानव मल को सिर पर ढोकर फेंकने के काम को सालों-साल करने के बाद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की ज़िन्दगी उन्हें इससे ज़्यादा और अलग भी कुछ देगी.
उनके जैसी ही लक्ष्मी नंदा के लिए ये कुछ ज़्यादा ही कठिन था. शादी के पहले उनके माता-पिता के घर वाले भी सफाई का काम करते थे पर मल उन्होंने पहली बार शादी के बाद उठाया.
चार साल पहले उन्होंने एक सामाजिक संस्था नई दिशा का साथ पकड़ा और उन्हें मानव मल हटाने से मुक्ति मिली। ज़िन्दगी जो बदली तो बदलती चली गई. जल्द ही उषा और लक्ष्मी न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक फैशन शो में मुख्य फैशन मॉडल की हैसियत से भाग लेंगी.
राजस्थान के अलवर ज़िले की रहने वाली ऊषा और लक्ष्मी न्यूयार्क जाने से पहले दिल्ली में रुकीं तो हमारी उनसे बात हुई.
हमने जब उनसे पूछा के न्यूयार्क जाकर क्या करेगीं तो तो ऊषा ने तपाक से उत्तर दिया " कैट वॉक."
और क्या-क्या करेंगे?
"मीटिंग अटेंड करेंगे, शॉपिंग करेंगे, होटलों में भी रुकेंगे और क्या।"
केवल एक झाडू-बाल्टी और टीन का एक छोटे टुकड़े से वो सालों-साल जिन घरों का मल उठाती थीं उन घरों में उन्हें हिकारत की नज़र से देखा जाता था. आज उन्ही घरों में उन्हें बड़े सम्मान से भीतर बुलाया जाता है और ख़ैरियत पूछी जाती है.
उत्साह से लबरेज़ लक्ष्मी और ऊषा आज अपना अतीत पूरी तरह से बदल देने को आतुर हैं.
चार साल पहले नई दिशा से जुड़ने के बाद लक्ष्मी ने पढ़ना लिखना सीखा। आज अपने चारों ओर से अचानक आ रहे नए अनुभवों को अपनी तरह से परिभाषित करने की कोशिश कर रही हैं.
पहली बार हवाई जहाज़ पर सफ़र करने के बाद उन्होंने लिखा...
“देख कर आई हूँ मैं उस जहाँ को
छू के आई हूँ मैं ऊँचे आसमाँ को
जहाँ लहराता है हवाओं का आँचल
जहाँ रुई जैसे उड़ते हैं बादल
आया है जीवन में नया बदलाव
भरने लगे हैं जो पुराने थे घाव
घाव जो अछूत होने का अहसास था
अछूत नाम के इस कलंक को अपने माथे से मिटाउँगी.”
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