एकालाप -७
कई नाम दिए उन्होंने मुझे
उन्होंने मुझे
और अपने लिए सुरक्षित कर लीं
बहुत सारी स्वतंत्रताएँ
दुहने को ज़मीन की तरह मुझे
और उपेक्षित छोड़ देने की
*
उन्होंने मुझे
दूसरा नाम दिया - बहनऔर अपने लिए सुरक्षित कर लिए
बहुत सारे अधिकार
मेरा अधिकार हड़पने के
और उपेक्षित छोड़ देने के .
*
उन्होंने मुझे
तीसरा नाम दिया - पत्नी
और अपने लिए सुरक्षित कर लिया
दुनिया भर का प्रभुत्व और वर्चस्व
मेरा सर्वस्व हरण करने को
और उपेक्षित छोड़ देने को।
*
उन्होंने मुझे
चौथा नाम दिया - बेटी
और अपने लिए सुरक्षित कर लीं
स्वर्ग की सीढियां, करके कन्यादान
बाँध कर पराये खूंटे पर
अरक्षित मुझे।
*
उन्होंने मुझे
एक और नाम दिया - वेश्या
और आरक्षित कर ली अपने लिए
भूमिका पतितपावन, उद्धारक और मसीहा की
धकेलते रहने को बार बार
मुझे उनकी अपनी वासना के नरक में .......
-ऋषभ देव शर्मा
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बहुत ही सुंदर लिखा कविता जी,दिल में उतर गई कविता.
जवाब देंहटाएंआलोक सिंह "साहिल"
सही सामाजिक यथार्थ की कविता।
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंकवि की ओर से सभी के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ.पुन: स्वागत कर सन्तोष होगा.
जवाब देंहटाएंरचना को पसंद करने
जवाब देंहटाएंऔर सराहने के लिए
कृतज्ञ हूँ.
स्नेह बनाए रखें.
>>> ऋषभ
नारी के विभिन्न रूप तो हैं पर वही नियति! हाय नारी तेरी वही कहानी....... बधाई चिंतनपरक कविता के लिए।
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