रविवार, 7 सितंबर 2008

बलात्कार की साइकोलॉजी - यह एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है



लात्कार की साइकोलॉजी - यह एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है


किसी भी महिला के लिए बलात्कार का शिकार होना बहुत बड़ा हादसा है। शायद उसके लिए इससे बड़ी त्रासदी कोई है ही नहीं। बदकिस्मत से अपने देश में महिलाओं से बलात्कार की दर निरंतर बढ़ती जा रही है। यह एक जघन्य अपराध है, लेकिन अक्सर गलतफहमियों व मिथकों से घिरा रहता है। एक आम मिथ है कि बलात्कार बुनियादी तौर पर सेक्सुअल एक्ट है, जबकि इसमें जिस्म से ज्यादा रूह को चोट पहुंचती है और रूह के जख्म दूसरों को दिखायी नहीं देते। बलात्कार एक मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा है। इसके कारण शरीर से अधिक महिला का मन टूट जाता है। बहरहाल, जो लोग बलात्कार को सेक्सुअल एक्ट मानते हैं, वह अनजाने में पीड़ित को ही `सूली' पर चढ़ा देते हैं। उसके इरादे, उसकी ड्रेस और एक्शन संदेह के घेरे में आ जाते हैं, न सिर्फ कानून लागू करने वाले अधिकारियों के लिए, बल्कि उसके परिवार व दोस्तों के लिए भी।

महिला की निष्ठा व चरित्र पर प्रश्न किये जाते हैं और उसकी सेक्सुअल गतिविधि व निजी-जीवन को पब्लिक कर दिया जाता है। शायद इसकी वजह से जो बदनामी, शर्मिंदगी और अपमान का अहसास होता है, बहुत-सी महिलाएं बलात्कार का शिकार होने के बावजूद रिपोर्ट नहीं करतीं। बलात्कार सबसे ज्यादा अंडर-रिपोर्टिड अपराध है।

बहुत से मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों का मानना है कि बलात्कार हिंसात्मक अपराध है। शोधों से मालूम हुआ है कि बलात्कारी साइकोपैथिक, समाज विरोधी पुरूष नहीं हैं जैसा कि उनको समझा जाता है। हां, कुछ अपवाद अवश्य हैं। बलात्कारी अपने समुदाय में खूब घुलमिल कर रहते हैं।

बलात्कार पीड़ित की जरूरतें

बलात्कार पीड़ित महिला की मदद कैसे की जाये? इस पर खूब विचार करने के बावजूद भी आसान उत्तर उपलब्ध नहीं है। वैसे भी जो महिला बलात्कार से गुजरी है, उसने जिस ट्रॉमा का अनुभव किया है, उसे दो और चार के नियम से ठीक नहीं किया जा सकता। डॉक्टर जिस्मानी घावों को तो भर सकते हैं, लेकिन जज्बात को पहुंची चोट जो दिखायी नहीं देती, उनको भरना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन उनको भरने से पहले यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि वह मौजूद हैं।

बलात्कार के बाद ज्यादातर महिलाएं शॉक की स्थिति में होती हैं। कुछ महिलाएं हिस्ट्रिकल हो जाती हैं जब कि अन्य इन्कार के स्तर से गुजरती हैं। लेकिन सभी पीड़ितों को अलग-अलग डिग्री का डर, ग्लानि, शर्मिंदगी, अपमान और गुस्सा महसूस होता है। यह भावनाएं एक साथ जागृत नहीं होतीं, लेकिन अपराध के लंबे समय बाद तक यह महिला को प्रभावित करती रहती हैं। इसलिए जो भी उस महिला के नजदीकी हैं, खासकर पुरूष सदस्य, उनके लिए उसकी भावनाओं को समझना व मदद करना महत्वपूर्ण है।

बलात्कार से बचना

महिलाएं, चाहे वह जिस उम्र की हों, आमतौर से यह सोचती हैं कि वह बलात्कारी का मुकाबला कर सकती हैं, उससे बच सकती हैं। बदकिस्मती से कम महिलाएं इस बात पर विचार करती हैं कि वह अपना बचाव किस तरह से करें सिवाय इसके कि वह बलात्कारी की टांगों के बीच में जोर की लात मार देंगी। सवाल यह है कि महिला क्या करे? पहली बात तो यह है कि वह अपने आपको कमजोर स्थिति में पहुंचने से बचाये। अन्य विकल्प हैं-

  • बातचीत करके अपने आपको संकटमय स्थिति से निकाल लें। कुछ महिलाओं ने बलात्कारी से अपने आपको यह कहकर बचा लिया कि वे मासिक-चक्र से हैं, गर्भवती हैं या उन्हें वीडी (गुप्तरोग) है।
  • बुरे लगने वाले फिजिकल एक्ट जैसे उल्टी करना, पेशाब करना या स्टूल पास करके हमलावर को आश्चर्यचकित कर दें।
  • कुछ मामलों में दोस्ताना व सभ्य बर्ताव करने और आशंकित बलात्कारी का विश्वास अर्जित करने से भी बचाव हो सका है।

अगर बच नहीं सकीं, तो

  • अपने आपको दोष न दें
  • उस पर विचार-विमर्श करें और मदद लें
  • मेडिकल सहायता लें

बाद के प्रभाव

पीड़ित अक्सर अपनी सुरक्षा के अहसास पर विश्वास खो बैठती है। उपचार कराते समय वह निम्न स्तरों से गुजरती हैं-

  • शुरूआती स्तर : चुप्पी और बेयकीनी से लेकर अत्यधिक एंग्जाइटी और डर की भावनाएं उत्पन्न होती हैं
  • दूसरा स्तर : डिप्रेशन या गुस्सा
  • तीसरा स्तर : बलात्कार की यादें अब भी अतिवादी भावनात्मक प्रतिक्रिया शुरू कर सकती हैं
  • अंतिम स्तर : सब कुछ पीछे छोड़ने के लिए तैयार।



`मिलाप 'से साभार

5 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा आलेख. सही है.

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    -समीर लाल
    -उड़न तश्तरी

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  2. बलात्कार से भारतीय समाज की स्त्रियाँ मृत-प्राय हो जाती हैं. हमें उन्हें इस स्थिति से निकलना होगा ताकि उसके बाद भी वे एक सामान्य जिंदगी जी सकें.

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  3. आपकी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहन मिलता है. कृतज्ञ हूँ . सद्भाव बनाए रखें

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