गुरुवार, 20 अगस्त 2009

जाने कैसी स्त्री थी वह


एकालाप








जाने कैसी स्त्री थी वह




जाने कैसी स्त्री थी वह ,
कितनी धीर ,
कितनी सबल !


कैसे कहा होगा उसने
माता पिता से,
पीहर और ससुराल से -


- नहीं ,मुझे यह विवाह स्वीकार नहीं
- न, मैं नहीं मानती बालपने की शादी को
- गुड़िया के खेल तक की समझ न थी मुझे
विवाह की समझ कैसे होती
- आपका दिया यह पति मेरा पति नहीं !


कैसे टटोला होगा अपने आप को
जवाब दिया होगा दुनिया को -


- बंधन है बिना प्रेम का विवाह
और मुझे अस्वीकार
- कोई पुरुष दीखा ही नहीं
प्रेम के योग्य ;
एक परमपुरुष के सिवा
- वह आलोकसुंदर परमपुरुष ही मेरा प्रियतम है !

कैसे किया होगा सामना
तन मन को बींधती ज़हरबुझी नज़रों का ,
नकारा होगा अध्यात्म का भी आकर्षण
तोड़कर शृंखला की कड़ियाँ सारी
भारी -


-
स्त्री पुरुष में जो भेद करे
वह धर्म मेरा नहीं
- स्त्री जाति से जो भयभीत हो
वह गुरु मेरा नहीं !

कैसे बाँटा होगा उसने अपने अस्तित्व को
अपने स्वयं रचे परिवार में -
किसी विधवा नौकरानी को
किसी सेवक को
किसी जिज्ञासु को
किसी गाय, किसी गिलहरी , किसी मोरनी को !

उसने जीते जी मुक्ति अर्जित की
विराटता सिरजी -
कभी बदली
कभी दीप
कभी कीर बनकर.
उसी ने दिखाया मुक्ति का मार्ग मेरी स्त्री को
संपूर्ण आत्मदान के बहाने
न्यस्त करके स्वयं को
सर्वजन की आराधना में .

वह सच ही महादेवी थी !!

* ऋषभ देव शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

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