शनिवार, 8 मई 2010

कौन है तू


तेलुगु कविता

कौन है तू 
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मैं एक वरूधिनी हूँ !
भयभीत हरिणेक्षणा हूँ
प्रेम करने के दंड के बदले में
धोखा दी गयी वेश्या हूँ
हिमपर्वतों को साक्षी मानकर कहती हूँ
प्यार के बदले में
वेदना ही मिली आँखों से नींद उड़ जाने की.
प्यार करने वाली स्त्रियों को ठगने वाले
माया प्रवरों के वारिस ही हैं मनु!
+ + +

मैं एक शकुन्तला हूँ!
एक पुरुष की अव्यक्त स्मृति हूँ
मुझे छोड़ सब कुछ याद रखने वाला वह
उसे छोड़ कुछ भी याद न करने वाली मै
दोनों के असीम सुख सागर का
मानो प्रकृति ही मौन साक्षी हो!

पति का प्यार नहीं सिर्फ निशानी पाने वाली मै!
+ + +

पाँच पतियों की पत्नी द्रौपदी हूँ मैं!
वरण कर अर्जुन का बँट गयी पाँच टुकड़ों में
पुरुष के मायाद्यूत में एक सिक्का मात्र हूँ !
भरी सभा में घोर अपमान
पत्नी के पद से वंचित करने वाला युधिष्ठिर!

बँटे दाम्पत्य में बचा तो केवल
जीवन-नाटक का विषाद !
+ + +

मैं ययाति की कन्या माधवी हूँ!
दुरहंकार से भरी पुरुषों की संपत्ति हूँ
संतान को जन्म देनेवाली
सर से पाँव तक सौन्दर्य की मूर्ति हूँ!
अनेक पुरुषों के साथ दाम्पत्य
मेरे लिए अपमान नहीं
वह तो मेरा क्षात्रधर्म है!
नित यौवन से भरी कन्या हूँ मै!
हतभाग्य!
स्त्री का मन न जानने वाले ये ...
ये क्या महाराज हैं? महर्षि हैं?
पुरुष हैं?
+ + +

दो आँखों पर सपनों के नीले साए
समय ने जो कहानियाँ बताईं
उन सबमे स्त्रियाँ व्यथित ही दिखीं!
यह पूरा स्त्रीपर्व ही दुखी स्मृतियों की परंपरा है !
+ + +

अब मैं मानवी हूँ!
अव्यक्ता या परित्यक्ता नहीं हूँ
अयोनिजा या अहिल्या नहीं होऊँगी !
वंचिता शकुन्तला की वारिस कदाचित नहीं हूँ !
अब मैं नहीं रहूँगी स्त्रीव का मापदंड बनकर
मैं अपराजिता हूँ !
अदृश्य शृंखलाओं को तोड़ने वाली काली हूँ !
शस्यक्षेत्र ही नहीं युद्धक्षेत्र भी हूँ !

लज्जा से विदीर्ण धरती भी मैं ही हूँ
उस विदीर्ण धरती को विशाल बाहुओं से ढकने वाला आकाश भी मैं ही हूँ !
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मूल तेलुगु कविता : रेंटाला कल्पना 

अनुवाद : आर. शांता सुंदरी 

1 टिप्पणी:

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