शुक्रवार, 24 मई 2013

ब्रिटेन में स्त्री : दो छवियाँ



मेरे लिए स्त्री के रूप में ब्रिटेन में रहना सारे तनावों, द्वन्द्वों, शर्मिंदगियों, छेड़छाड़, अभद्रता, गंदी निगाहों या तिरस्कारपूर्ण दृष्टि, सड़क चलते अकारण सुनाई पड़ने वाली टिप्पणियों, कपड़े सम्हालते रहने वाली अधीरता, अपनी देह को लेकर लज्जित होने या उसे कोई निंदनीय वस्तु समझ कर उसे लेकर अपराधबोध से ग्रस्त की भाँति उसे छिपाते रहने से मुक्ति, स्त्रीमात्र होने की असुरक्षा, बेटी के घर लौटने तक बेचैनी, उसके साथ प्रतिदिन घटने वाले इन्हीं सब और दूसरी भी कई तरह की समस्याओं से व्याकुलता, दु:ख, क्षोभ तथा उनसे उपजे मानसिक दबाव, लोगों से कहा- सुनी, लांछनों और आरोपों के वातावरण से मुक्ति, भयंकर आशंकाओं व तत्सम्बन्धी डर से संधि-विच्छेद जैसा है। 

स्त्री को क्योंकि पारिवारिक और सामाजिक अन्याय दोनों झेलने पड़ते हैं परन्तु मेरे साथ इस प्रकार के  पारिवारिक कोई दबाव कभी न होने के कारण अब मैं इन दोनों से ही मुक्त हूँ। 


उन स्त्रियों की स्थिति के बारे में विचार आता है जिनके परिवार ब्रिटेन जैसे खुले समाज में रह कर भी स्त्री के प्रति भेदभाव व दक़ियानूसीपन से ग्रस्त हैं। वे स्त्रियाँ भले ही मेरी तरह एक उन्नत व खुले समाज में रहती हैं किन्तु पारिवारिक व पारम्परिक कारणों के चलते वे अब भी स्त्री होने की पीड़ा भोगने को अभिशप्त हैं। इसलिए स्त्री या किसी की भी स्थिति में सुधार के लिए सामाजिक व परिवेशगत परिवर्तन ही पर्याप्त नहीं होते अपितु और भी बहुत कुछ चाहिए होता है, अन्यथा अधुनातन समाज में रह कर भी समाज का कोई तबका अपने निजी कारणों से सन्त्रास भोगने को विवश होता है। 


मैं उन स्त्रियों के बारे में सोच कर विचलित हो उठती हूँ जो इस उन्नत समाज में आ कर रहने के बावजूद भी अभिशप्त हैं । इन अभिशापों में एक है कि ब्रिटेन में आ कर बसने और पलने के बावजूद इन महिलाओं को खतने की पीड़ा से गुजरना  पड़ता है। ब्रिटेन में सैंकड़ों देशों के लोग रहते हैं और अपनी अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता के नाम पर इसे धार्मिक मामला समझते हैं। यहाँ नियमानुसार प्रतिबन्ध होने से ही कुछ समाधान व अन्त नहीं होता क्योंकि ऐसे कट्टर लोग अपने परिवार की महिलाओं को अपने देश ले जा कर वहाँ उनका खतना करवा कर आ जाते हैं । किसी दूसरे देश आदि या घर पर अपने साथ कर लिए जाने वालों पर सरकार का हरदम नियन्त्रण हो भी कैसे सकता है ? यद्यपि अब ब्रिटेन सरकार और भी कड़ाई बरतने की योजना बना रही है। महिलाओं का खतना आदि की प्रथा इस देश में बसे हुए सोमालिया आदि देशों की महिलाओं के परिवार करते हैं और अपने धार्मिक अधिकारों के नाम पर करते हैं। 

जाने किन किन अमानवीय परम्पराओं को ढोते चले जाती हैं आबादियाँ व पीढ़ियाँ ! 



दूसरी ओर ब्रिटेन में ब्रिटिश मूल की स्त्री की स्थिति के आकलन के लिए अभी कल ही की घटना उदाहरण है । यहाँ कल हुआ आतंकी हमला मेरे घर के बिलकुल समीप ही हुआ। कल ही उस से जुड़े कई वीडियो व चित्र भी मैंने फेसबुक पर भी लगाए। संभवतः लोगों ने ध्यान दिया हो तो देखा होगा कि रक्तसने हाथों व रक्तरंजित नंगे छुरे को लेकर जब हत्यारे आतंकी सैनिक को मार कर हटे तो वहाँ लोगों की भीड़ थी। किन्तु उस भीड़ में एक महिला ने पहल की व उस हत्यारे के पास जाकर उस से बातचीत करने लगी ताकि बहाने से वह उसका छुरा व हथियार उस से ले सके। दो महिलाएँ उन हत्यारों के समक्ष ही व पुलिस के भी पहुँचने से पहले ही उस मृतक सैनिक के पास जा कर उसकी नब्ज देखने व साँसे देखने के काम में लग गईं। एक महिला तो धरती पर उस मृतक सैनिक के समीप बैठ गई और उसे मृत पाकर तुरन्त सैनिक की छाती व पीठ पर हाथ रख कर उसके लिए वहीं प्रार्थना भी की, जिसे वीडियो में एकदम साफ देखा जा सकता है। 


जिस देश में महिलाओं को समान नागरिक अधिकार व साँस लेने के बराबर अवसर दिए जाते हैं, वहाँ महिलाएँ अपने सामाजिक दायित्वों के लिए पुरुषों से भी आगे बढ़कर अपना साहस दिखाती हैं, यह घटना इस बात का जीता जागता प्रमाण है । जिन्होने न देखा हो अथवा जिन्हें विश्वास न हो वे साक्षात यहाँ भी देख सकते हैं -


एक-एक विवरण अलग चित्रों में यहाँ क्लिक कर विस्तार से देखा जा सकता है - 
The Angels of Woolwich


इस वीडियो में उन हत्यारों से बातचीत, मृतक सैनिक के समीप जा कर उसकी सहायता करने की तत्परता ( वह भी हत्यारों के सामने ही) आदि सब महिलाएँ कर रही हैं। और तो और, दूसरे हत्यारे के बिलकुल पास से सटकर बिना प्रभावित हुए आराम से अपने कार्य पर आगे बढ्ने का साहस करती भी दो महिलाएँ देखी जा सकती हैं, जब वह अपना वक्तव्य दे रहा था। क्या हम इसकी कल्पना भी कर सकते हैं ?


ऐसे हमले व हत्या के स्थान से महिलाएँ तो क्या पुरुष भी चीखते चिल्लाते भाग खड़े होते हैं। कल से पूरा देश हत्यारे को बातों में उलझा कर हथियार लेने के लिए आगे बढ़ी उस महिला की प्रशंसा में डूबा है। वह महिला वहाँ से गुजरना चाहती एक बस में बैठी थी। जैसे ही इस घटना के कारण बस अटकी तो वह कूद कर बाहर आई और सीधे हत्यारे को बातों में उलझाने के लिए चली गई ताकि वह अपने हथियारों का प्रयोग अन्य लोगों पर न कर सके। बस में बैठे लोगों ने उस सहित शेष दो महिलाओं के पूरे घटनाक्रम का वीडियो लिया। 


 यह सब कितना जोखिम भरा डरावना व साहसपूर्ण तो है ही, सराहनीय व अनुकरणीय भी है। हम अपने यहाँ कल्पना भी नहीं कर सकते। 
स्त्री अधिक मानवीय, अधिक सामाजिक और अधिक दायित्वबोध से पूर्ण होती है, उसे समाज में समुचित स्थान दे कर देखिए वह साहस में भी कम नहीं होती। 

मिलिए उस महिला से - http://www.itv.com/news/2013-05-23/ingrid-loyau-kennett-woolwich-london-attack-soldier/

जो देश और समाज उन्नति चाहते हैं उन्हें स्त्री को एक बँधी बँधाई सकुचाती व समाज से निर्वासित किए हुए व्यक्ति की छवि से निकाल कर सम्यक स्थान व अधिकार देने होंगे, समान अवसर व समान सुविधाएँ देनी होंगी, उसे ATM मशीन की तरह संतानोत्पत्ति की मशीन या घरेलू उपयोग की वस्तु से इतर कर स्वतंत्रचेता मनुष्य के रूप में स्वीकारना होगा। समाज में  उसकी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी। तभी वह अपने मूल रूप व शक्ति का उपयोग अन्य बड़े कार्यों में कर सकेगी। यह घटना इस बात का साक्षात प्रमाण है। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सोमालिया की तरह अन्य अफ़्रीकी देशों में भी ऐसी परम्परायें हैं। उनकी वैवाहिक परम्परायें और भी भयानक लगती हैं किंतु उनके लिये वही आनन्ददायी है। भारत में स्त्रियों की स्थिति भिन्न है। भारत विरोधाभासों से भरापूरा देश है। यहाँ उच्चतम और निम्नतम स्थितियाँ हैं। असंतुलन की स्थिति में भी लोग जी रहे हैं पूरे संतुलन के साथ। यह असंतुलित संतुलन कमाल का ज़ादू है।

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  2. धार्मिक स्वतंत्रता, परंपरा और रीति रिवाज के नाम पर पाशविक प्रवृत्तियों को प्रश्रय देने से मानवजाति कब बाज आएगी...!

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  3. Yeah Aapka Lekh Padhakar Man Dravit Ho uthata hai Akhir Yeah Kya Ho Raha hai Hamare Samaj me ... Kab Badlav Ayega Yeah ek Vicharniya Prasn hai...Nari ke Prati Ho Rahe Bhed Bhav ko Ujagar Kar Jo Kaam Aap kar rahi hain Ye Aapke Aadarsh Sinddhanton ko Pradarsit Karta hai.. Sadar Sahit..

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  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  5. बिलकुल सोचने पर मजबूर करती है आपकी ये पोस्ट.....

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  6. मित्र ! गान्धी जयन्ती /लाल बहादुर शास्त्री-जयंती की अग्रिम वधाई हम बढ़ाएँ एक क़दम
    स्वस्थ 'गान्धी-वाद' की ओर !
    अथ आप की रचनायें सत्य की उद्घाटक हैं !

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