शनिवार, 3 जनवरी 2009

जन्नत : बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये


जन्नत


बहत्तर कुआँरियाँ एक आदमी के लिये !
वाह क्या बात है !
यह है जन्नत का नज़ारा !
यहाँ तो चार पर ही मन मार कर रह जाना पड़ता है,
र वे चारों भी समय के साथ ,
कितनों की माँ बन-बन कर हो जाती हैं रूढ़ी, पुरानी ,
अल्लाह की रहमत !
बहत्तर कुआँरियां ,
हमेशा जवान रहेंगी, हर समय तुम्हारा मुँह देखेंगी, राह तकेंगी !
न माँ, न बहन, न बेटी,
ये सब फ़लतू के रूप हैं औरत के !
सामने न आयें !
बस बहत्तर कुआँरियाँ और दिन रात भोग-विलास !
और हमें क्या चाहिये !
अल्लाह को ख़ुश करने के लिये,
सैकड़ों की मौत बने हमारे शरीर के चाहे चीथड़े उड़ जायें,
बस, बहत्तर कुआँरियाँ हमें मिल जायें !
- डॉ.प्रतिभा सक्सेना






9 टिप्‍पणियां:

  1. कमाल है यह सोच भी कि जन्नत में सिर्फ़ भोग विलास होता है और उस के लिए बहत्तर क्वारीं औरते मिलती हैं . लगता है अल्लाह भी अपने बन्दों को बंदगी करने के लिए रिश्वत दे रहा है.

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  2. कमाल है ये कौन सी जन्नत है भाई ??

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  3. अगर वे कुंवारियां वैसी ही है जैसे कि इनसेट में एक दिख रही है तो कोई भी मुसलमां होना चाहेगा ! क्यों सच कहा न ? नारीवादी चुप क्यों हैं ? तस्वीर पर और तफ्सरे पर भी !

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  4. कलियुगी मर्द का सच.
    तस्वीर की तरह कुंवारियां 'जन्नत' में हों तो बहत्तर नहीं एक सौ बहत्तर को भी भोग लेंगे कलियुगी मर्द.

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  5. इतना ही नही कहा गया है कि जन्नत मे 72 हूरें ही नहीं 150 गिलमा भी मिलेंगे। गिलमा खूबसूरत लडकों को कहते हैं। हूरो के साथ मर्दो को वह भी तो अय्याशी के लिए मिलेंगे। जन्नम में बहुत जमीन से ज्यादा अय्याशी का प्रबंध है।

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  6. संयत भाषा और शालीन कविता है

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