शोक गीत : एक लड़की की आत्महत्या पर
(भाग २)
- ऋषभ देव शर्मा
फ़िर दीवाली भी तो आई , जगमग जगमग करती .
धनिकों के ऊँचे महलों में दीप शिखाएँ धरती
अंधकार में रही उपेक्षित किंतु तुम्हारी कुटिया .
जला न चूल्हा तक पर वैभव जला रहा फुलझडियाँ .. ..
पहली बार बताया माँ ने ''बेटी, हम गरीब हैं.
रो मत माँग न खील खिलौने, बेटी , हम गरीब हैं।''
धनिकों के ऊँचे महलों में दीप शिखाएँ धरती
अंधकार में रही उपेक्षित किंतु तुम्हारी कुटिया .
जला न चूल्हा तक पर वैभव जला रहा फुलझडियाँ .. ..
पहली बार बताया माँ ने ''बेटी, हम गरीब हैं.
रो मत माँग न खील खिलौने, बेटी , हम गरीब हैं।''
गरीबी का पहला उपहार
भावना का निर्मम संहार .. [७]
अब तक तो सब ही मानव थे सखी तुम्हारे लेखे
किंतु वर्ग दो उस दिन तुमने अपनी आँखों देखे.
टुकडे कर डाले मानस के नर ने धन के पीछे
मानव स्वयं समाज मध्य ही सीमा रेखा खींचे
प्रश्न उठा था उस दिन मन में, किसने करी व्यवस्था ?
समझ न सकी पहेली लेकिन, रही अबोध अवस्था
बने सपने झंझा अवतार
रुदन ही निर्धन का आधार [८]
धीरे धीरे सखी खो रहीं थीं तुम अपना बचपन.
इठलाना इतराना यों ही सीख रहा था जीवन.
तभी तुम्हारी एक सहेली, विदा हुई ससुराल
लाखों की संपत्ति गई थी यह धनिकों की चाल .
बिखर रहे थे जब डोली पर खन खन खोटे सिक्के .
लूट रही थीं तुम भी उनको, खाकर धक्के मुक्के
वधू ने किए सभी श्रृंगार
देख मचला मन का संसार . [९]
एक कल्पना मन में बैठी, है मुझको भी सजना
हाथों में रचनी है मेहंदी, चरण महावर रचना
स्वर्ण भूषणों से लद करके मुझको भी जाना है.
और स्वर्ण से कीर्तिमान निज साजन को पाना है.
पति-इच्छा ने तुमको क्रमश: यौवन दिया कुमारी
होठों पर मीठी मुस्कानें, आँखें ज़हर कटारी
रूपरेखा मनसिज की मार
बिंधा फूलों से ही संसार .. [१०]
कठिन हैं कठिन, किशोरी, सत्य, पुष्प-धन्वा के तीर .
कठिन है कठिन कुँवारी आयु, कठिन रीता पण पीर ..
बाँधता काम देव का पाश, स्वयं चंचल मन उनको.
प्रकृति को सदा पुरूष के साथ ,यौवन से यौवन को ..
रहीं चूमती तुम अपना ही बिम्ब देख दर्पण में .
शर की नोक लिए हाथों में, मदन लगा सर्जन में।
कठिन है कठिन कुँवारी आयु, कठिन रीता पण पीर ..
बाँधता काम देव का पाश, स्वयं चंचल मन उनको.
प्रकृति को सदा पुरूष के साथ ,यौवन से यौवन को ..
रहीं चूमती तुम अपना ही बिम्ब देख दर्पण में .
शर की नोक लिए हाथों में, मदन लगा सर्जन में।
सीखने लगीं प्रेम व्यवहार
चुभाता सूनापन अब खार ..[११]
स्वप्न के कुशल चितेरे ने निशा के काले पट पर.
अनोखे चित्र खींच डाले नयन में दो क्षण रुक कर..
मिला पलकों की रेखा को अनोखा बांक पाना ,री !
अनोखे चित्र खींच डाले नयन में दो क्षण रुक कर..
मिला पलकों की रेखा को अनोखा बांक पाना ,री !
देह-आकर्षण दुगुना हुआ, हुई कटि क्षीण तुम्हारी ॥
मन ने देखे सपने घोड़े वाले राज कुँवर के
अंग अंग में मन-रंजन के , चुम्बन -आलिंगन के...
मन ने देखे सपने घोड़े वाले राज कुँवर के
अंग अंग में मन-रंजन के , चुम्बन -आलिंगन के...
तुम्हारा यौवन का संभार !
पिता पर चिंता, दुर्वह भार !![१२]
.......................[अगले अंक में समाप्य]
realy great composition
जवाब देंहटाएंwell edited
raj kumar ke spane na dekhe to kuch or ache logo ke kismat khul jayegi...
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