आधी आबादी
ऋषभदेव शर्मा
वे रसोई में अडी़ हैं,
अडी़ रहें.
वे बिस्तर में पड़ी हैं,
पड़ी रहें.
यानी वे
संसद के बाहर खड़ी हैं,
खड़ी रहें?
' गलतफहमी है आपको .
सिर्फ़ आधी आबादी नहीं हैं वे.
बाकी आधी दुनिया भी
छिपी है उनके गर्भ में,
वे घुस पड़ीं अगर संसद के भीतर
तो बदल जाएगा
तमाम अंकगणित आपका. '
उन्हें रोकना बेहद ज़रूरी है,
कुछ ऐसा करो कि वे जिस तरह
संसद के बाहर खड़ी हैं,
खड़ी रहें!
उन्हें बाहर खड़े रहना ही होगा
कम से कम तब तक
जब तक
हम ईजाद न कर लें
राजनीति में उनके इस्तेमाल का
कोई नया
सर्वग्राही
सर्वग्रासी
फार्मूला.
शी.........................
कोई सुन न ले...............
चुप्प ...............!
चुप रहो,
हमारे थिंक टैंक विचारमग्न हैं;
सोचने दो.
चुप रहो,
हमारे सुपर कंप्यूटर
जोड़-तोड़ में लगे हैं;
दौड़ने दो.
चुप रहो,
हमारे विष्णु, हमारे इन्द्र-
वृंदा और अहिल्या के
किलों की दीवारों में
सेंध लगा रहे हैं;
फोड़ने दो.
तब तक
कुछ ऐसा करो कि वे जिस तरह
संसद के बाहर खड़ी हैं,
खड़ी रहें!
कुछ ऐसा करो
कि वे चीखे, चिल्लाएं,
आपस में भिड़ जाएं
और फिर
सुलह के लिए
हमारे पास आएं.
हमने किसानों का एका तोड़ा,
हमने मजदूरों को एक नहीं होने दिया,
हमने बुद्धिजीवियों का विवेक तोड़ा,
हमने पूंजीपतियों के स्वार्थ को भिड़ा दिया
और तो और.............हमने तो
पूरे देश को
अपने-आप से लड़ा दिया.
अगडे़-पिछड़े के नाम पर
ऊँच-नीच के नाम पर
ब्राह्मण-भंगी के नाम पर
हिंदू-मुस्लिम के नाम पर
काले-गोरे के नाम पर
दाएँ-बाएँ के नाम पर
हिन्दी-तमिल के नाम पर
सधवा-विधवा के नाम पर
अपूती-निपूती के नाम पर
कुंआरी और ब्याहता के नाम पर
के नाम पर.....
के नाम पर....
के नाम पर.....
अलग अलग झंडियाँ
अलग अलग पोशाकें
बनवाकर बाँट दी जाएं
आरक्षण के ब्राह्म मुहर्त में
इकट्ठा हुईं इन औरतों के बीच!
फिर देखना :
वे भीतर आकर भी
संसद के बाहर ही खड़ी रहेंगी;
पहले की तरह
रसोई और बिस्तर में
अडी़ रहेंगी,
पड़ी रहेंगी!
यानी वे संसद के बाहर खडी है
जवाब देंहटाएंखडी रहे
अब ऐसा ना हो पायेगा
जो ऐसा करना चाहेगा जेल जाएगा :)
बहुत अच्छी कविता है. कड़वा सच.
जवाब देंहटाएंnice..................................
जवाब देंहटाएंफिर देखना, वे भीतर आकर भी संसद के बाहर खड़ी रहेंगी,
जवाब देंहटाएंपहले की तरह रसोई और बिस्तर में अड़ी रहेंगी, पड़ी रहेंगी...
कुछ न होने से कुछ होना तो बेहतर है...वैसे भी अगर एक सोनिया कुछ ठान ले तो पार्टी के भीतर और बाहर सारे विरोध धरे के धरे रह जाते हैं...
(कविता जी, आपका शायद मेरठ में किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेना निर्धारित है...कब है, हो सका तो आपसे वहां भेंट करना मेरा सौभाग्य होगा...)
जय हिंद...
अर्थपूर्ण कविता -
जवाब देंहटाएंसाज़िश तो यही है , उलझाए रखो ...किन्ही फालतू बातों में ...ताकि वे बाहर ही खड़ी रहें ..!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कविता !
वीनस जी,मुक्ति जी,सुमन जी,खुशदीप जी, अरविन्द जी, सुजाता जी!
जवाब देंहटाएंआभार.
@खुशदीप जी
७ फरवरी की भेंट के उपरांत १३ फरवरी को इस सेमिनार http://hindibharat.blogspot.com/2010/02/blog-post.html
में मेरठ जाना था ( गई थी). अब तो लन्दन लौट भी आई हूँ २४ फरवरी को.
शेष मुझे मेरठ के किसी कार्यक्रम की तो कोई अभी जानकारी नहीं, संभवतः आपके पास उस समय की सूचना किसी ने तब दी होगी.
मुझे भी आपसे भेंट कर हर्ष हुआ.
अड़े रहना एक तरह का प्रतिरोध भी है ।
जवाब देंहटाएंआप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
जवाब देंहटाएंहम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/