मंगलवार, 15 जून 2010

ब्रिटेन में पहला गर्भपात विज्ञापन




ब्रिटेन में पहला गर्भपात विज्ञापन
गर्भपात का विज्ञापन
गर्भपात की सलाह देनेवाले विज्ञापन पर चर्च और गर्भपात विरोधी समूहों ने आपत्ति की है


ब्रिटेन में टेलीविज़न पर पहली बार गर्भपात सेवाओं के बारे में सलाह देनेवाले एक विज्ञापन का प्रसारण शुरू किया गया है.


इस विज्ञापन पर चर्च और गर्भपात विरोधी समूहों ने नाराज़गी जताई है.


ब्रिटेन में गर्भपात के बारे में पहली बार विज्ञापन टीवी चैनल – चैनल फ़ोर – पर प्रसारित किया गया है.


इस विज्ञापन को एक सहायता संस्था – मेरी स्टोप्स इंटरनेशनल – ने तैयार करवाया है जो ब्रिटेन में हर साल होनेवाले दो लाख से अधिक गर्भपातों में से एक तिहाई गर्भपात करवाने में सहायता करती है.


संस्था का कहना है कि अनचाहे गर्भ के बारे में जागरुकता नहीं होने के कारण इस विज्ञापन का प्रसारण ज़रूरी है.


मगर एक गर्भपात विरोधी संस्था – सोसायटी फ़ॉर द प्रोटेक्शन ऑफ़ अनबॉर्न चिल्ड्रेन – का दावा है कि इस विज्ञापन से गर्भपात की संख्या बढ़ेगी क्योंकि इससे गर्भपात को अगंभीर समझा जाने लगेगा.


रोमन कैथोलिक चर्च का कहना है कि इस तरह के विज्ञापन से गर्भपात एक उपभोक्ता सेवा बन जाएगा.


ब्रिटेन के उत्तरी आयरलैंड प्रदेश में इस विज्ञापन को प्रसारित नहीं किया जाएगा क्योंकि वहाँ गर्भपात को अभी भी अवैध समझा जाता है|


8 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।

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  2. मेरी स्‍टोप क्लिनिक का जाल तो पूरी दुनिया में लगता है।

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  3. अवांछित संतान को जन्म देने से बेहतर गर्भपात है।
    किन्तु फिर प्रश्न उठता है कि अवांछित पुत्रियों का गर्भपात क्या सही है? यदि नहीं तो क्यों नहीं? और यदि सही है तो भारत जैसे देशों में तो पुत्रियाँ बचेंगी ही नहीं।
    सो प्रश्न जटिल है।
    घुघूती बासूती

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  4. गर्भपात कब सही कब गलत, इस पर सहमति बननी चाहिए.

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  5. पूरा विज्ञापन देखा... ऐसा लगता नहीं कि इसमें कुछ आपत्तिजनक माना जाना चाहिए। स्‍त्री देह पर स्‍त्री को पूरा हक दिया जाना चाहिए... इसमें धर्म को क्‍या दिक्‍कत है ?

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  6. पुरुषवादी सोच पूरी दुनिया के धार्मिक आकाओ पर हावी है ।अभी समय लगेगा स्त्रियों को तथाकथित सांस्कृतिक मूल्यों से लगातार संघर्ष करना पडेगा। जब तक पुरुषवादी समाज के लोग यह स्वीकार न कर लें कि स्त्री ही मनुष्यता की जननी है वह सेकेंड सेक्स नही वह तो फर्स्ट सेक्स है। उसे अपने बारे मे निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। वही तो घर बसाती है,वही तो घर बनाती है-पुरुष तो उस पर लगाता अधिकार जमाता आ रहा है।

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